सरकार नफे में रही, और कर्मचारी घाटे में, न्यूनतम वेतन 26000 रुपये करने पर हुई वादाखिलाफी !!!

(Pi Bureau)

केंद्र में नई सरकार के गठन के साथ ही केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने भी अब अपनी मांगों को लेकर कमर कस ली है। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर डीओपीटी मंत्री के साथ पत्राचार हो रहा है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए गठित, नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के संयोजक, जेसीएम स्टाफ साइड के सचिव और एआईआरएफ के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने जून के पहले सप्ताह में कैबिनेट सेक्रेटरी एवं चेयरमैन नेशनल काउंसिल, ‘जेसीएम’ को लिखे अपने पत्र में कई खुलासे कर दिए हैं। उन्होंने बताया है कि किस तरह से न्यूनतम वेतन 26000 रुपये करने पर सरकार द्वारा कर्मचारियों से वादाखिलाफी की गई।

सरकार ने पूरा नहीं किया वादा
मंत्रियों की कमेटी ने आश्वासन देकर हड़ताल वापस करा दी। बाद में कर्मियों को कमेटी की तरफ से जो भरोसा दिया गया था, वह तोड़ दिया गया। अतीत के कई प्रसंगों की याद दिलाते हुए मिश्रा ने कैबिनेट सचिव से आग्रह किया है कि अविलंब आठवें वेतन आयोग का गठन किया जाए। नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के संयोजक मिश्रा ने कहा है, पुरानी पेंशन बहाली और केंद्रीय कर्मियों के दूसरे मुद्दों पर कोई भी अंतिम निर्णय लेने से पहले सरकार द्वारा कर्मचारी संगठनों से विचार विमर्श किया जाए।

कैबिनेट सेक्रेटरी एवं चेयरमैन नेशनल काउंसिल, ‘जेसीएम’ को लिखे पत्र में शिव गोपाल मिश्रा ने कहा, भारत सरकार ने 7वें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें 2016 से लागू की थीं। कर्मचारी पक्ष ने 7वें वेतन आयोग और उसके बाद भारत सरकार से न्यूनतम वेतन को संशोधित कर 26,000 रुपये प्रति माह करने की मांग की थी। यह गणना, आईएलसी मानदंडों और डॉ. अकरोयड फॉर्मूला आदि के विभिन्न घटकों के आधार पर की गई थी। उस वक्त 7वीं सीपीसी के समक्ष यह बात कही गई थी कि न्यूनतम वेतन अभी भी निचले स्तर पर है। तब जेसीएम स्टाफ साइड के सभी तर्कों को 7वीं सीपीसी ने बिना किसी आधार के खारिज कर दिया था। नतीजा, सातवें वेतन आयोग द्वारा 2016 से न्यूनतम वेतन 18000 रुपये करने की सिफारिश कर दी गई। स्टाफ पक्ष ने मांग की थी कि फिटमेंट फैक्टर 3.68 फीसदी होना चाहिए, लेकिन 7वीं सीपीसी ने केवल 2.57 फीसदी की सिफारिश की। केंद्र सरकार ने भी स्टाफ साइड के पक्ष के साथ बिना कोई बातचीत किए, उन सिफारिशों पर अपनी सहमति व्यक्त कर दी।

समझौते के बाद स्थगित की गई थी हड़ताल
7वें वेतन आयोग यानी ‘सीपीसी’ की प्रतिकूल सिफारिशों को कर्मचारी पक्ष के साथ कोई चर्चा किए बिना ही स्वीकार कर लेना, इससे परेशान होकर राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के घटक संगठनों ने सरकार को हड़ताल की चेतावनी दे दी। न्यूनतम वेतन और फिटमेंट फैक्टर में संशोधन की मांग पर सरकार को नोटिस दे दिया। केंद्र सरकार ने कर्मचारी पक्ष के साथ बातचीत के लिए तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में मंत्रियों की एक समिति गठित कर दी। समिति के अन्य सदस्यों में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली, तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु और तत्कालीन रेल राज्य मंत्री, मनोज सिन्हा शामिल थे। सरकार इस बात पर सहमत हुई कि कर्मचारी पक्ष की मांगों को पूरा करने के लिए उनके साथ आगे चर्चा की जाएगी। समिति द्वारा दिए गए आश्वासन पर एक सौहार्दपूर्ण समझौता हो गया। इसी आधार पर अनिश्चितकालीन हड़ताल भी स्थगित कर दी गई। इसके बाद केंद्र सरकार ने कर्मचारी पक्ष के साथ बातचीत करने और न्यूनतम वेतन व फिटमेंट फैक्टर बढ़ाने के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया।

बतौर शिव गोपाल मिश्रा, सरकार खुद कहती है कि मुद्रास्फीति 4 फीसदी से 7 फीसदी के बीच है। औसतन यह लगभग 5.5 फीसदी होगी। कोविड के बाद मुद्रास्फीति प्री-कोविड स्तर से अधिक है। यदि हम 2016 से 2023 तक दैनिक जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं और उनकी खुदरा कीमतों की तुलना करें तो स्थानीय बाजार के अनुसार, उनमें 80 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। पहली जुलाई 2023 से कर्मियों को लगभग 46 फीसदी महंगाई भत्ता ही प्रदान किया जाता है। वास्तविक मूल्य वृद्धि और कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को प्रदान किए गए डीए के बीच काफी अंतर है। केंद्र सरकार का राजस्व भी वर्ष 2015 से 2023 तक दोगुना हो गया है। बजट विवरणों के अनुसार हम राजस्व संग्रह में काफी वृद्धि देख सकते हैं।

केंद्र सरकार का वास्तविक राजस्व 100 फीसदी से अधिक बढ़ गया है, इसलिए सरकार की भुगतान क्षमता वर्ष 2016 की तुलना में अधिक है। अप्रैल 2023 में जीएसटी संग्रह में भी वृद्धि हुई है। सरकार ने 1.87 लाख करोड़ रुपये एकत्रित किए हैं। वर्ष 2022-23 में आयकर संग्रह सबसे अधिक था। वित्त वर्ष 2022-23 में सकल व्यक्तिगत आयकर संग्रह (एसटीटी सहित) 9,60,764 करोड़ (अंतिम) रुपये है। पिछले वर्ष की तुलना करें तो इसमें 24.23 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के मुताबिक, भारत का अप्रत्यक्ष कर संग्रह 2022-23 में 7.21 प्रतिशत से बढ़कर 13.82 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले वर्ष 12.89 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा था। वर्ष 2023-24 में बजट अनुमान राजस्व संग्रह 33,60,858 करोड़ रुपये होने की उम्मीद थी। 2022-23 में सकल राजस्व 30,43,067 करोड़ रुपये था। राज्य के हिस्से के बाद केंद्र सरकार का वास्तविक राजस्व 20,86,661 करोड़ रुपये हो गया था। ऐसे में सरकार को कर्मियों के हितों का ख्याल रखना चाहिए।

नई भर्तियां न होने से कर्मचारियों पर बढ़ रहा दबाव
मिश्रा ने अपने पत्र में लिखा, लगभग 10 लाख रिक्तियों के साथ केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या पिछले दशक से कम होती जा रही है। मौजूदा कर्मचारियों पर काम का भारी दबाव है। वर्ष 2020-21 के दौरान केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेज (वेतन) और भत्ते का वास्तविक व्यय कुल राजस्व व्यय का केवल 7.29 फीसदी है। पेंशनभोगियों के संबंध में पेंशन पर वास्तविक व्यय, कुल राजस्व व्यय का लगभग 4 फीसदी है। पूर्व के वेतन आयोग द्वारा यह सिफारिश भी की गई है कि मैट्रिक्स की दस साल की लंबी अवधि की प्रतीक्षा किए बिना समय-समय पर इसकी समीक्षा की जा सकती है। इसकी समीक्षा और संशोधन, एक्रोयड फॉर्मूले के आधार पर किया जा सकता है।

सरकार ने उपरोक्त सिफारिशों को न तो स्वीकार किया है और न ही 8वें केंद्रीय वेतन आयोग का गठन किया। केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों का डीए/डीआर, 50 फीसदी तक पहुंच चुका है। मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि को देखते हुए डीए, उक्त आंकड़े के पार चला जाएगा। यहां यह उल्लेख करना भी उचित है कि केंद्र सरकार में 20 लाख से अधिक सिविल कर्मचारी, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत शासित होते हैं। वे हर महीने उन्हें अपने मूल वेतन और डीए का 10 फीसदी, एनपीएस में योगदान करते हैं। इससे घर तक पहुंचने वाला उनका वेतन काफी कम हो जाता है।

बढ़ती महंगाई में सरकार फायदे में है, लेकिन कर्मचारी को कुछ नहीं मिलता। कर्मचारी, परेशान हैं। सरकार अब तक एनपीएस को खत्म करने पर राजी नहीं हुई है। ओपीएस बहाली पर सरकार ने कोई आश्वासन नहीं दिया है। ऐसे में जेसीएम स्टाफ साइड ने मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर, सरकार से आग्रह किया है कि योग्य और प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को सरकारी सेवा की ओर आकर्षित करने के लिए तुरंत 8वें केंद्रीय वेतन आयोग का गठन किया जाए। केंद्र के वेतनमान/भत्ते/पेंशन और अन्य लाभों को संशोधित किया जाए। ओपीएस और वेतन आयोग के गठन को लेकर सरकार, कर्मचारी पक्ष से विचार-विमर्श करे।

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