(Pi Bureau)
गोरखपुर। जिंदा रहते 90 साल के हबीब शाह (झिन्नू) की कफन खरीदने की जिद पूरी न करना 80 साल की जैबुन्निशा को भारी पड़ गया। गुस्से से तमतमाए पति ने तलाक, तलाक, तलाक बोला और जैबुन्निशा का हंसता-खेलता कुनबा तबाह हो गया। यह मामला चार साल पहले (2013) का है। एक-दूसरे से बेहद प्यार करने वाले पति-पत्नी अब अलग रह रहे हैं। ये कहानी कहीं और नही बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के शहर गोरखपुर की है।जहाँ इस मसले को इन दिनों तूल दिया जा रहा है।
मुफ्ती की सलाह के बाद एक-दूसरे के साथ फिर रहने के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं। मुफ्ती ने जैबुन्निशा को हलाला की सलाह दी है। इसका मतलब है कि वह दूसरा निकाह करें, फिर दूसरे पति की इच्छा से तलाक देकर पहले पति यानी हबीब शाह से दोबारा निकाह करें।
शहर क्षेत्र के गाजीरौजा निवासी हबीब शाह ने जैबुन्निशा से निकाह किया। दोनों के छह बेटे और दो बेटियां हैं। ज्यादातर की शादियां हो चुकी हैं। कभी कोट की सिलाई में महारथ रखने वाले हबीब की तबियत वर्ष 2013 में खराब हो गई। उन्हें लकवा मार गया। उन्हें जाने क्या सूझी, उन्होंने पहले ही कफन मंगाने की जिद शुरू कर दी। इस संबंध में पत्नी जैबुन्निशा से बात की लेकिन उन्होंने बात अनसुनी कर दी। इससे गुस्साए हबीब ने पत्नी को तलाक दे दिया। अब दोनों अलग-अलग हैं।
यह मामला मुफ्ती अख्तर के पास पहुंचा। सुनवाई हुई और मुफ्ती ने हलाला की सलाह दे दी। इससे जैबुन्निशा के पैरों तले जमीन खिसक गई। हालांकि हबीब को इसका एहसास अब हुआ है। वह तलाक को गलत तो बता रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद पत्नी के साथ रहने को तैयार नहीं हैं। वह कहते हैं कि सब कुछ खत्म हो गया, फिर भी देश, समाज की परंपरा का पालन करना है।
हलाला की मुश्किल
तलाक को मंजूरी देने वाले मुफ्ती अख्तर का कहना है कि झिन्नू मियां का मामला अनोखा था। दोनों एक साथ फिर रहें, इसके लिए हलाला जरूरी है। जैबुन्निशा की उम्र ऐसी थी जिसके लिहाज से हलाला करना संभव नहीं था। ऐसे में दोनों ने अलग-अलग रहने की बात कही।
80 से 85 फीसदी तलाक गुस्से में
शहर काजी वलीउल्लाह बताते हैं कि तीन तलाक के 80 से 85 फीसदी मामले बिना सोचे-समझे गुस्से में लिए गए फैसले होते हैं। कुछ मामलों में पति दूसरी औरत की चाह या पत्नी को जायदाद से बेदखल करने की नीयत से ऐसा कदम उठाते हैं। इस तरह के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए समाज के लोगों को आगे आना होगा। ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए ताकि बिना जायज कारण के इस तरह के कदम उठाने वाले हजार बार सोचें।