(Pi Bureau) लखनऊ सूबे में करीब चौदह वर्षों बाद सत्ता में आयी बीजेपी ने सरकार और पार्टी की कमान अपने दो “नाथ” यानि योगी आदित्य नाथ और महेंद्र नाथ के हाथों में देकर अपने 2019 के मिशन को मजबूती देने की कोशिश की है. पिछड़ों को पहले साध चुकी बीजेपी पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक संस्था का दर्जा देकर व कोटे में कोटा का फार्मूला लागू कर और मजबूत किया है.
मुख्यमंत्री क्षत्रिय और प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण बनाकर सवर्णों को खुश करने की कोशिश की है. इस तरह आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अगड़ों-पिछड़ों को अपने पाले में लाने की कवायद में जुटी बीजेपी व आरएसएस अपने नेताओं के सहारे बहुसंख्यकों को भी एकजुट करने की कवायद में लगे है.
54 फीसदी पिछड़ी और 24 फीसदी दलितों के साथ ही साथ 22 फीसदी अगड़ों को जोडकर भाजपा 2019 में चुनावी लड़ाई को अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच यानि 80 और 20 में कराने के इंतजाम में लगी है. पार्टी के तौर पर भाजपा का यह चुनावी माईक्रो मैनेजमेंट का हिस्सा हो सकता है लेकिन इस सियासी गुणा गणित के अलावा उसके इन दोनों “नाथ” के सामने कई तरह की चुनौतियों भी हैं.
योगी आदित्य नाथ के नेतृत्व में जिस क़ानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की दुहाई देकर सरकार सत्ता में आयी, आज पांच महीने से ज्यादा बीत जाने पर भी इन मोर्चों पर नाकाम दिख रही है. व्यवस्था परिवर्तन की दुहाई देने वाली योगी सरकार व्यवस्था तो नहीं बदल सकी हाँ खुद जरूर बदल गयी है. सरकार बाढ़ की विभीषिका रोकने में नाकाम रही है. मानसून में हर साल बाढ़ का दंश झेलने वाले पूर्वांचल को इस बार भी राहत नहीं मिली, जबकि सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ सहित कई मंत्री इसी क्षेत्र से आते हैं.
मुख्यमंत्री योगी के शहर गोरखपुर भी इससे अछूता नहीं रहा. बाढ़ का पानी शहर के कई इलाकों में घुस गया. भ्रष्टाचार से ऊबी चुकी यूपी की जनता ने स्वच्छ सरकार देने के नाम पर गद्दी पर बैठाया,उस सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हो गए. भ्रष्टाचार को लेकर चर्चाओं में योगी सरकार के कई मंत्री हैं. विपक्ष का भी कहना है कि अगर धुंआ उठ रहा है तो कहीं न कहीं आग जरूर लगी है.
इसके अलावा सरकार बनने का बाद कई दिनों तक मुख्यमंत्री अपना ही सचिवालय नहीं बना पाए. सीएम का अनुभवहीन सचिवालय जिन्हें नौकरशाही के तौर-तरीकों की कोई जानकारी नहीं है के चलते आईएएस अधिकारी अपने हिसाब से सरकार को अपनी उँगलियों पर नचा रहे हैं.
इसी तरह पार्टी में भी नवनियुक्त अध्यक्ष महेंद्र नाथ के लिए तमाम चुनौतियां हैं. योगी सरकार बनने के बाद से ही पार्टी और सरकार के बीच समन्वय की कमी के चलते कार्यकर्ताओं में नाराजगी रही है. जिसके लिए संघ को सामने आना पडा और समन्वय बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ. अमित शाह के लखनऊ दौरे पर मंत्रियों के कामकाज को लेकर कार्यकर्ता नाराज थे. उनका कहना था कि सरकारी मशीनरी उनके साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार करती है.
वकीलों की नियुक्ति को लेकर भी संगठन में नाराजगी रही, थोक के भाव पार्टी में शामिल बाहरी और अपने पुराने कार्यकर्ताओं के बीच आगामी निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव में टिकट को लेकर मारामारी भी एक बड़ी चुनौती होगी. अभी तक सहकारिता चुनाव में आधारहीन रही पार्टी को बेहतर परिणाम देने का दबाव भी इस “नाथ” की चुनौतियों में से एक होगा.