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Shashwat Tewari
यह सही है कि भारत में आईएस के आतंकी हिंसक वारदात को तभी अंजाम देते हैं जब कुछ स्थानीय नागरिकों का सहयोग मिलता है। सैफुल्लाह को भी 12 स्थानीय लोगों का सहयोग मिला और तभी उसने 7 मार्च की सुबह एमपी में एक ट्रेन विस्फोट भी करवाया। सवाल उठता है कि जो आतंकी हमारे देश की दरगाहों को नुकसान पहुंचाने की योजना बना रहे हैं, उन आतंकियों को स्थानीय नागरिक सहयोग क्यों करते है?
यह पहला अवसर है जब आईएस के किसी आतंकी ने सुनियोजित तरीके से भारत की धरती पर हमला किया है। इससे पहले आईएस के जो लोग पकड़े गए वे इंटरनेट आदि पर ही सक्रिय थे। यानि अब आईएस ने प्रभावी तरीके से भारत में दस्तक दे दी है। पूरी दुनिया देख रही है कि इराक और सीरिया में आईएस की विचारधारा वाले लोगों ने किस तरह से दरगाहों की विचारधारा वाले मुसलमानों का कत्लेआम किया है। जब आईएस को मुसलमानों को ही मौत के घाट उतारने पर कोई एतराज नहीं है तो फिर अन्य धर्मों के लोगों का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारत में सूफी परम्परा के अन्तर्गत ही हिन्दू और मुसलमान भाईचारे के साथ रहते हैं। आईएस हमारे इस भाईचारे को ही तोडऩा चाहता है।
एटीएस की मुठभेड़ में मारा गए सैफुल्लाह को उसके पिता सरताज और भाई खालिद ने देशद्रोही माना है। इसीलिए पिता और भाई ने सैफुल्लाह का शव भी लेने से इंकार कर दिया है।
07 और 08मार्च की रात को यूपी की एटीएस यदि लखनऊ के एक मकान में छिपे आईएस के आतंकी सैफुल्लाह को एनकाउंटर में नहीं मारती तो यूपी सहित देश की बड़ी दरगाहों में विस्फोट हो जाते। खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक आईएस के बड़े आतंकियों ने सैफुल्लाह को दरगाहों में विस्फोट कर भारत के माहौल को बिगाडऩे के निर्देंश दिए थे। सैफुल्लाह के मकान से पिस्टल, रिवॉल्वर, आरडीएक्स आदि जो सामग्री मिली है, उससे साफ प्रतीत होता है कि सैफुल्लाह किसी बड़े हमले की फिराक में था। सैफुल्लाह की वारदात से भारत में दरगाहों को मानने वाले मुसलमानों को सावधान हो जाना चाहिए। अब समय आ गया है जब भारत के मुसलमानों को आईएस जैसे आतंकियों से जुड़े लोगों के खिलाफ खुलकर सामने आना चाहिए। जहां तक हिन्दुओं का सवाल है तो लाखों हिन्दू पूरी अकीदत के साथ दरगाहों में सूफी परम्पराओं के अनुरूप जियारत करते हैं। कोई हिन्दू भले ही एक बार मंदिर न जाए लेकिन दरगाह में जरूर जाता है। यानि मुसलमानों से पहले हिन्दू दरगाहों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है।