दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिका पर बुधवार को अहम फैसला देते हुए कहा कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा। कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम में दंडित करने के प्रावधान असंवैधानिक हैं। हाईकोर्ट की कार्यकारी चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि इस फैसले का अपरिहार्य नतीजा यह होगा कि इस अपराध के कथित आरोपी के खिलाफ मुंबई के भीख मांगना रोकथाम कानून के तहत लंबित मुकदमा रद किया जा सकेगा। वहीं, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई सुनियोजित ढंग से भिखारियों का गैंग या रैकेट चलाता है तो उस पर कार्रवाई की जाना चाहिए। इतना ही नहीं, यह भी कहा कि सरकार भीख मांगने के लिए मजबूर करने वाले गैंग व गिरोहों पर कार्रवाई करने के लिए वैकल्पिक कानून लाने को आजाद है।
इसी साल मई महीने में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि अगर सरकार देश में भोजन या नौकरी देने में असमर्थ है तो भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है? भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह बात कही थी।
चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरिशंकर की पीठ ने यह भी कहा था कि एक व्यक्ति केवल अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए भीख मांगता है न कि ये करना उसे पसंद है। बेंच ने कहा था कि अगर कोई हमसे एक करोड़ रुपये की पेशकश करे तो क्या आप या हम भीख नहीं मांगेंगे। यह लोगों की जरूरत के मुताबिक होती है, कुछ लोग भोजन के लिए अपना हाथ पसारते हैं। एक देश में सरकार भोजन या नौकरी देने में असमर्थ है तो भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि यदि गरीबी के कारण ऐसा किया गया है तो भीख मांगना अपराध नहीं होना चाहिए और भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं किया जाएगा।
गौरतलब है कि हर्ष मंदर और कर्णिका की ओर से दायर जनहित याचिका में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के अलावा राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों को आधारभूत मानवीय और मौलिक अधिकार देने का आग्रह किया गया था।
इससे पहले केंद्र सरकार और दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने अक्टूबर 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट में कहा था सामाजिक न्याय मंत्रालय भीख मांगने को अपराध की श्रेणी के बाहर करने और उनके पुनर्वास को लेकर मसौदा तैयार कर रही है, लेकिन क़ानून में बदलाव करने के फैसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।