(By:Riwa Singh)
महंत आदित्यनाथ उर्फ़ अजय सिंह बिष्ट का बतौर मुख्यमंत्री उभरना निःसंदेह आश्चर्यजनक है। आदित्यनाथ के प्रशंसक हमेशा से राग अलापते थे कि पूर्वांचल में रहना है तो योगी-योगी कहना है, उन्हें लगता रहा कि प्रदेश के लिए उनसे मुखर व्यक्ति कोई नहीं है पर वे भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे कि आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन ही जाएंगे। कारण उनका हिंदुत्व के नाम पर एक वर्ग-विशेष की ओर झुकाव नहीं, लोग जानते हैं कि उनके इस झुकाव से भाजपा को कोई परहेज़ नहीं पर समस्या यह थी कि भाजपा स्पष्ट रूप से यह कह नहीं सकती कि योगी बहुत सही कर रहे हैं जबकि योगी आदित्यनाथ अपने विचारों को लेकर बिल्कुल स्पष्ट रहे हैं। 2007 में गोरखपुर में हुए दंगों को लेकर भी शहर के सांसद का रुख स्पष्ट रहा और फिर 2012 में बसपा के दागी नेता बाबू सिंह कुशवाहा के भाजपा में शामिल होने पर भी उन्होंने सीधी बात करते हुए भाजपा की कड़ी आलोचना की और यह भी कहा कि अगर ऐसा होता रहा तो वे राजनीति छोड़ देंगे।
इस वक्त गोरखपुर खुशी से झूम रहा है, अलीगढ़ में महाआरती हो रही है, दिल्ली में सांसद के आवास पर उत्सव का माहौल है। गोरखपुर के लोग तो ऐसे खुश हुए जा रहे हैं जैसे कोई उनके मोहल्ले से उठकर विधानसभा पहुंच गया हो। हर चौराहे पर मिठाइयां बंट रही हैं, त्यौहार-सा माहौल है। कल पटाखों से शहर गूंज रहा था। आप ये नहीं कह सकते कि जश्न मनाने वाले सभी लोग कट्टर हिंदू हैं। महंत आदित्यनाथ का सीएम बन जाना किसी सपने के सच होने से कम नहीं क्योंकि लोग इस बात को समझते थे कि भाजपा ऐसी ‘भूल’ नहीं करेगी, पर वो लोग खुश हैं क्योंकि 1998 से अबतक चुनाव में शिकस्त का मुंह न देखने वाले इस योगी में कभी वो ‘संभ्रांत’ कुल वाला दंभ नहीं रहा। आदित्यनाथ हमेशा से लोगों के बीच रहे, उनसे खुलकर मिलते रहे। कभी सांसद वाले ‘क्लास’ का एहसास नहीं होने दिया तभी गोरखपुर के निकट पिपराइच और महाराजगंज के आम लोग भी बिना किसी अपॉइंटमेंट के उनसे सीधे मिलने पहुंच जाते और उन्हें इस बात की तसल्ली रहती कि ‘बाबा’ तक बात पहुंच जाए तो वो देख लेंगे। उस क्षेत्र के लोगों के लिए सांसद कोई वीआईपी नहीं रहा, उनके लिए सांसद तक पहुंचना ज़िले के एसपी तक पहुंचने से ज्यादा आसान रहा। इसे आप शासन व्यवस्था का दुर्भाग्य कह लें या आदित्यनाथ का सहयोग कि थाने की एफआईआर से ज्यादा प्रभावशाली उन लोगों को आदित्यनाथ की दी हुई ज़बान लगती थी।
गोरखपुर में संसाधनों की कमी नहीं, उसका इतिहास भी गौरवशाली रहा है पर शहर का वो विकास नहीं हो पाया जिसकी उम्मीद थी। लोगों को आदित्यनाथ इसलिए पसंद हैं क्योंकि वो हमेशा से मुखर होकर अपने क्षेत्र की समस्याओं को संसद में उठाते रहे हैं। रेलमंत्री लालू यादव से कभी उन्होंने ही कहा था कि बजट में गोरखपुर के हिस्से कुछ भी नहीं आता, वैशाली ट्रेन में भी गोरखपुर से जुड़ने वाले कोच कम हो गए जिसके फलस्वरूप गोरखधाम ट्रेन की शुरूआत हुई। गोरखपुर हवाई अड्डे को मेट्रो शहरों से जोड़ने के लिए भी इन्होंने कदम उठाए। शहर में एम्स बनवाने के लिए भी शुरू से जुटे रहे पर सिर्फ इनके जुटने भर से क्या होने वाला था।
ख़ैर, लोग यही तो चाहते हैं कि उनका प्रतिनिधि उनकी बात रखे और आदित्यनाथ ने ये काम बखूबी किया। इन सभी अच्छाइयों के बावजूद वो कई आंखों में चुभते हैं इसलिए नहीं कि वे हिंदुत्व की बात करते हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वे दूसरे सम्प्रदायों के पतन के साथ हिंदुत्व की बात करते हैं। उनके भाषण या तो आपको एक सम्प्रदाय-विशेष का कट्टर प्रेमी बना देंगे या स्वयं उनका विरोधी। मैं उनकी विरोधी ही बन सकी क्योंकि मैं देखती थी कि जब वो लव-जिहाद और जिहादी आतंकवाद की बातें करते थे तो मेरे आस-पास बैठे मुस्लिम विद्यार्थी कैसे सिकुड़ जाया करते थे। उनकी इस कमी में एक अच्छाई यह है कि अगर आप उनसे मदद मांगने जाएं तो आपका हिंदू न होना कभी बाधक नहीं होगा। मैं स्वयं ऐसे 2 दर्जन मामलों की गवाह रही हूं जब उन्होंने सामने आकर दूसरे कौम के लोगों की मदद की है।
अभी प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों से कहीं अधिक गोरखपुर खुशी में मद्होश है क्योंकि वो योगी आदित्यनाथ में वीर बहादुर सिंह को देख रहा है। अजय सिंह बिष्ट दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो गोरखपुर से हैं, इस श्रेणी में पहला नाम कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह का है। लोग आज भी उनके दीवाने हैं। सन् 1985 से 1988 तक अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने बहुत-सी योजनाएं शुरू की थीं जो आज तक अधूरी पड़ी हैं। लोग निराशा में डूबकर कहते हैं कि वीर बहादुर सिंह अगर जीवित होते तो गोरखपुर का नक्शा ही बदल गया होता।
आप जश्न में एक वर्ग विशेष को देखिए तो पाएंगे कि स्वयं को उनके समर्थक कहने वाले ही उनकी लुटिया डुबोने का कार्य करते हैं। वे हिंदुत्व के विजय का उत्सव मना रहे हैं, वे प्यासे हैं अपना वर्चस्व स्थापित करने को। उनके इस उल्लास में उनका दानवी दंभ झलक रहा है। आदित्यनाथ ने स्पष्ट चुनौती दी है कि ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। इतना तो तय है कि कानून-व्यवस्था सख्त होने वाली है।
योगी में बहुत ऊर्जा है और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को ऊर्जा की तीव्र आवश्यकता है। उम्मीद करते हैं कि पंच के तख्ते पर बैठकर अजय सिंह बिष्ट भी निष्पक्ष होकर न्याय कर सकेंगे। अपनी ऊर्जा को सही दिशा दे सकेंगे, गोरखपुर जितना ही प्रेम समूचे राज्य से करेंगे और लोगों का ‘सबका साथ सबका विकास’ पर यकीन कायम रहने देंगे।