रूस ने शुरू किया अब तक का सबसे बड़ा युद्घाभ्यास, 3 लाख सैनिक हुए शामिल

दुनिया में एक बार फिर अपना वर्चस्व कायम करने के मकसद से रूस ने मंगलवार से पश्चिमी साइबेरिया क्षेत्र में युद्घाभ्यास शुरू कर दिया। शीतयुद्घ के बाद किया जाने वाला यह अब तक का सबसे बड़ा युद्घाभ्यास बताया जा रहा है, जो 17 सितंबर तक चलेगा। इसमें चीन और मंगोलिया की सेनाएं भी हिस्सा ले रही हैं।

हालांकि नाटो (उत्तरी एटलांटिक संधि संगठन) ने इस पर अपनी नाराजगी जताई है और इसे पश्चिम लोकतंत्र के लिए खतरा माना है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस सैन्य अभ्यास को “वोस्तोक-2018” नाम दिया गया है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन देश के पश्चिमी शहर व्लादिवोस्तक में आर्थिक फोरम की मेजबानी करने के बाद इस सैन्य अभ्यास को देखने जा सकते हैं। इस आर्थिक फोरम के प्रमुख अतिथियों में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हैं।

यह सैन्य अभ्यास ऐसे समय पर किया जा रहा है जब रूस और पश्चिमी देशों में तनाव बढ़ता जा रहा है। इन देशों ने रूस पर पश्चिमी मामलों में दखल देने का आरोप लगाया है। इसके अलावा यूक्रेन और सीरिया में चल रहे संघर्ष को लेकर भी तनातनी चल रही है। पिछले माह रूसी राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने कहा था कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय हालात में रूस अपनी रक्षा करने में सक्षम है।

नए हथियार भी शामिल

फोटो रूस की सेना इस सैन्य अभ्यास में अपने नए हथियारों की ताकत भी दिखाएगी। स्कंदर मिसाइलों से लक्ष्य को भेदा जाएगा। ये मिसाइलें परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं। उन्नत टी-80 और टी-90 टैंकों के अलावा लड़ाकू विमान सुखोई-34 और सुखोई-35 भी अपनी क्षमता का प्रदर्शन करेंगे।

खासियत

03 लाख सैनिक

36 हजार सैन्य वाहन

01 हजार लड़ाकू विमान

80 युद्धपोत

समुद्र में कैलिबर मिसाइलों से लैस युद्धपोत तैनात

नाटो बोला- रूस का आक्रामक रवैया

नाटो ने रूस के सैन्य अभ्यास की आलोचना करते हुए इसे बड़े संघर्ष की तैयारी करार दिया है। नाटो प्रवक्ता डायलन ह्वाइट ने हाल में कहा था- “हम पिछले कुछ समय से रूस का आक्रामक रवैया देख रहे हैं। वह अपना बजट और सैन्य मौजूदगी तेजी से बढ़ा रहा है।”

नाटो अक्टूबर में करेगा बड़ा युद्घाभ्यास

अक्टूबर और नवंबर के बीच में शुरू होने वाले नाटो के “ट्राइडेंट जक्शन 2018” में 30 देशों के करीब 40 हजार जवान शामिल होंगे। नाटो का भी यह सबसे बड़ा युद्घाभ्यास होगा। इसमें 130 से ज्यादा एयरक्राफ्ट और 70 से ज्यादा युद्घपोत शामिल होंगे।

रूस के ये बड़े सैन्य अभ्यास

1981 : सोवियत काल में डेढ़ लाख सैनिक थे शामिलरूस की सेना ने इससे पहले सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास सोवियत काल में 1981 में किया था। उस अभ्यास में एक से डेढ़ लाख सैनिकों ने हिस्सा लिया था।

2017 : रूस ने पिछले वर्ष किया था “जापाद”रूस ने पिछले साल बेलारूस के साथ “जापाद-2017” युद्घाभ्यास किया था। जापाद का मतलब “पश्चिम” होता है। इस युद्घाभ्यास में करीब 12,700 सैनिकों ने हिस्सा लिया था।

वास्तोक की तैयारियां लगभग पूरी

रूस ने इंग्लिश चैनल से होते हुए बड़े पैमाने पर अपने युद्घपोतों, जंगी विमानों को यूराल पर्वत के तटीय इलाकों में तैनात किया है।

रूस, चीन और मंगोलिया के सैनिक भी युद्घाभ्यास वाली जगह पर पहुंचे।

इसमें करीब 3200 चीनी सैनिक हिस्सा लेंगे।

रूस के युद्घाभ्यास के पीछे क्या है मकसद

इस युद्घाभ्यास के जरिए रूस अपनी सैनिक शक्ति को और अधिक मजबूत करना चाह रहा है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है अमेरिका को अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए रूस की ओर से यह अभ्यास किया जा रहा है। यह अभ्यास ऐसे समय हो रहा है जब सीरिया में इदलिब को लेकर अमेरिका और रूस आमने-सामने आ गए हैं।

रूस और चीन के लिए एक ही खतरा

“वास्तोक 2018” को रक्षा और विदेश मामलों के जानकार कुछ दूसरे नजरिए से देखते हैं। ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी. पंत का कहना है कि दोनों देश एक-दूसरे को चुनौती नहीं मान रहे हैं। वहीं इन दोनों की ही सोच में अमेरिका इनके लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। इसी खतरे से निपटने के लिए यह युद्घाभ्यास किया जा रहा है। इसके जरिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी सैन्य ताकत भी दिखाना चाहते हैं। उनका यह भी कहना है कि 1990 के बाद से रूस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाशिये पर चला गया है।

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसको दोबारा से मजबूती प्रदान करने की कोशिश और देश का वर्चस्व वापस बनाने की कोशिशों में लगें हैं।चीन-पाकिस्तान की ओर झुकावप्रोफेसर पंत का यह भी कहना है कि बीते कुछ समय में रूस का झुकाव भारत से इतर भी दूसरे देशों के साथ बढ़ा है। इसमें चीन सबसे पहले आता है, वहीं पाकिस्तान के साथ भी उसके रिश्ते पहले की अपेक्षा काफी मजबूत हुए हैं।

भारत के साथ संबंधों की बात पर उनका कहना है कि द्विपक्षीय रिश्तों में गरमाहट तभी आती है जब दो देश एक-दूसरे की संवेदनाओं को सही से समझते हैं। वह ये भी मानते हैं कि मौजूदा समय में जिस तर्ज पर भारत ने अमेरिका से बेहतर संबंध बनाने की तरफ कदम बढ़ाया है वह दरअसल आज की जरूरत है।

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