World food day 2019: …तो इस प्रकार से हुआ भारतीयों के खाने की जान “रोटी” का जन्म !!!

(Pi Bureau)

हिंदुस्तान के किसी भी शहर की थाली बिना रोटी के अधूरी मानी जाती हैं । चपाती, फुल्का या रोटी इसे कई सारे नामों से पुकारा जाता है। खाने की थाली चावल के साथ बिना रोटी के पूरी नहीं होती है। उत्तर-मध्य भारत की थाली का विशेष अंग ये रोटी खाने में जितनी आसान है बनाने में उतनी ही मुश्किल भी क्योंकि इसे बिल्कुल गोल बनाया जाता है साथ ही नर्म औैर मुलायम भी। लेकिन कभी आपने सोचा है कि इस रोटी का जन्म कैसे हुआ या सबसे पहले किसने रोटी बनाई होगी।

तो आइए जानें ऐसे ही रोटी से जुड़े कुछ सवालों का जवाब।

वैसे तो खाने के लिए दूसरे देशों में ज्यादातर ब्रेड का प्रयोग किया जाता है लेकिन भारत में बनने वाली रोटी बहुत खास है क्योंकि इसे लगभग हर घर में महिलाएं रोज बनाती हैं। कहते है कि रोटी सबसे पहले पर्सिया से आई, जहां पर ये थोड़ी मोटी और मैदे की बनी होती थी। लेकिन आटे की बनी रोटी का जन्म पहले अवध में हुआ जहां पर गेंहू की पैदावार ज्यादा होती थी। गेंहू से बनने वाली इस रोटी का आटा थोड़ा मोटा और दरदरा होता था जो कि कुछ-कुछ आजकल बनने वाली रोटी जैसा होता था।

ऐसे ही रोटी के बारे में एक प्रचलित कहानी है कि इसे पहले यात्रियों के खाने के लिए बनाया गया था जोकि कटोरी के आकार का होता था ताकि इसमें सब्जी को रखकर आसानी से खाया जा सके और किसी और बर्तन की जरूरत न पड़े।

हमारे देश में रोटी पुराने समय से ही बन रही है इसका प्रमाण पुराने ग्रंथों से मिलता है जिसमें कहा गया है कि रोटी हणप्पा काल में भी लोग बनाना जानते थे क्योंकि ये काल बहुत तरह के अनाज ज्वार, बाजरा, गेहूं और सब्जी को उगाना जानता था।

साथ ही रामचरितमानस में तुलसीदास ने 1600 ईसापूर्व में कटोरी से मिलती-जुलती रोटी का वर्णन किया है। संस्कृत में भी रोटी को रोटिका नाम से चिकित्सा ग्रंथ में कहा गया है। 16 वीं सदी में लिखी गई इस किताब में रोटी को सब्जी से खाने वाले पदार्थ के रूप में बताया गया है।

वैष्णव धर्म के ग्रंथ में बताया गया है कि 15वीं शताब्दी में माधवेंद्र पुरी द्वारा भगवान कृष्ण को रोटी का भोग लगाने का नियम चावल की मीठी खीर से ज्यादा था। केवल उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी रोटी के इतिहास के बारे में मिलता है। कन्नड़ के 10वीं और 18वीं शताब्दी के साहित्य में भी रोटी के बारे में बताया गया है।

इस साहित्य में रोटी को पकाने के कुछ अलग-अलग तरीकों के बारे में बताया गया है। जिसमें दो प्लेट के बीच में अंगारों में रोटी को पकाना बताया गया है। इसके साथ ही एक खास तरह की रोटी जिसे तवा में पकाकर उस पर घी लगाया जाता है और फिर मीठे के साथ खाया जाता है। रोटी को पकाने की ये विधि आज भी प्रयोग की जाती है।

आयुर्वेद में बताया गया है कि रोटी का जन्म वैदिक काल से ही हुआ है। पुरोधास में एक शब्द पैरोटा के बारे में मिलता है जिसमें दालें या सब्जियां भरकर बनाते हैं। जो कि कुछ-कुछ पैनकेक के जैसा होता है और यज्ञ या हवन के समय बनाया जाता है। इससे पता चलता है कि रोटी का जन्म आम आदमी ने किया था ताकि वो आसानी से खा सके।

वैदिक काल के अलावा मुगल काल के बादशाह अकबर के समय में अबुल फजल ने रोटी के बारे में बताया है कि ये बादशाह की सबसे पसंदीदा थी। अकबर रोटी को स्नैक के रूप में मीठे और घी के साथ खाना पसंद करता था। औरंगजेब के काल में भी आए एक यात्री ने बताया था भारत में बनने वाली नर्म और मुलायम रोटी को एक निवाले में आसानी से खाया जा सकता है।

आम आदमी का भोजन की जान रोटी तो अंग्रेजों के काल में भी प्रसिद्ध हुई थी। जब 1857 की क्रांति के लिए क्रांतिकारी रोटी को निशान के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे। इतिहास चाहे जो भी कहता हो लेकिन भारत में बनने वाली रोटी का स्वाद और आकार बहुत ही अनोखा है जिसे बनाने की कला हर घर की गृहणी के पास है।

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