(Pi Bureau)
नई दिल्ली। अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई शुक्रवार को शुरू हो गई। मामले में वादी सुब्रमण्यम स्वामी ने आला अअदालत से विवादित स्थल पर लोगों को पूजा करने का अधिकार देने की मांग की। स्वामी ने इसे दीवानी से बदलकर सार्वजनिक हित के मामले की तरह देखने की भी अपील की।
अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह कोई दीवानी विवाद नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों का मामला है। इसके साथ ही स्वामी ने इसे दीवानी से बदलकर सार्वजनिक हित के मामले की तरह देखा जाए। स्वामी की इस दलील पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध जताते हुए कहा, यह सवाल तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही हल कर चुका है। वक्फ बोर्ड के वकील सिब्बल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 1994 में ही यह फैसला सुनाया था कि इस जमीन के मालिकाना हक से जुड़े दीवानी मामले की अलग से सुनवाई की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने तमाम वादियों को पहले यह स्पष्ट करने को कहा कि कौन किसकी तरफ से पक्षकार है। इस पर सुन्नी बोर्ड की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले के कई पक्षकारों का निधन हो चुका है, ऐसे में उन्हें बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज कई भाषाओं में हैं, ऐसे में पहले उनका अनुवाद कराया जाना चाहिए। सुनवाई में उत्तर प्रदेष सरकार की तरफ से एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सबसे पहले पक्ष रखते हुए मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी करने की मांग की। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस बात पर आपत्ति जताई कि उचित प्रक्रिया के बिना यह सुनवाई की जा रही है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बेहद अहम मामले के निपटाने के लिए तीन जजों – जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की विशेष बेंच गठित की है। यह बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिकाओं और विवादित जमीन के मालिकाना हक पर फैसला के लिए रोजाना सुनवाई करेगी।