राजनैतिक रोड शो के मायने !

(Exclusive)
Shashwat Tewari

रोड शो का कार्यक्रम नेताओं के दिमाग की उपज नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक चिंतकों के दिमाग की उपज है। इन राजनीतिक चिंतकों ने आज के समाज और उसकी प्रवृत्तियों का बड़ी गहराई से अध्ययन किया। अमूमन भारतीय समाज मे यह देखा जाता है कि जो गाँव का अधिक धनवान या शक्तिशाली व्यक्ति होता है, उसके प्रति सम्मान और उससे जुडने की सभी की चाहत होती है क्योंकि मदद वही करता है, जो शक्तिशाली होता है। जो सम्पन्न होता है। जो अपने धन और बल का प्रदर्शन कर ले जाता है। लेकिन उनकी लोकप्रियता के पीछे यह भी तथ्य पाया गया है कि इस देश का आदमी जैसे-जैसे बलवान या धनवान होता है, उसी मात्रा मे वह विनम्र भी होता जाता है। मिलनसार भी होता जाता है। लोगों की मदद करने की भावना भी उसमें बलवती हो जाती है। दूसरों की मदद करने मे वह प्रसन्नता का अनुभव करता है। लेकिन धीरे-धीरे इसका केंद्र बदल गया। अब लोग गाँव या क्षेत्र के सबसे बलवान के यहाँ नहीं जाते हैं, बल्कि उनके यहाँ भीड़ लगती है, जो उस गाँव या उस क्षेत्र का सबसे अधिक राजनीतिक पहुँच वाला होता है। राजनीतिक पद पर होता है।
इसी कारण धीरे-धीरे नेताओं के स्थानीय प्रभाव कम होता गया। आम जनता के मन मे उसके प्रति एक प्रकार की नफरत पैदा होने लगी। उसके कहने पर मुंह पर लोग भले ही हाँ कर लें, लेकिन वोट नही देने लगे। तब नेताओं ने यह रोड शो का कांसेप्ट निकाला। इस रोड शो के द्वारा यह प्रदर्शन करने की कोशिश की जा जाती है कि इस इलाके की सबसे अधिक जनता मेरे साथ है। इसलिए जिस क्षेत्र मे यह रोड शो किया जाता है आमतौर पर उस क्षेत्र की जनता को भी उसके पक्ष मे ही आना चाहिए।
लेकिन इन रोड शो मे स्थानीय जनता की न के बराबर भागीदारी बहुत ही चिंतनीय विषय है। वह केवल तमाशबीन के रूप मे इसमे शामिल होती देखी जा रही है।
यूपी में आज हर पार्टी अपने को सबसे लोकप्रिय और ताकतवर बताने के लिए रोड शो कर रहा है। जब से चुनाव शुरू हुआ है तब से कभी भारतीय जनता पार्टी और कभी सपा और कांग्रेस गठबंधन रोड शो कर रहे हैं। इनके रोड शो मे अधिक से अधिक भीड़ जुटाने और दिखाने की प्रतियोगिता चल रही है। यदि रोड शो मे स्थानीय भीड़ होती, तो कौन दल अधिक ताकतवर है, यह पता चल जाता। लेकिन इन दोनों प्रमुख दलों द्वारा जो भीड़ इकट्ठा की जा रही है।
दोनों दलों मे एक साथ रोड शो की शुरुआत इलाहाबाद से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और गठबंधन के राहुल और अखिलेश ने रोड शो निकाल कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। यहाँ की स्थानीय जनता कौतूहल के कारण इन्हे देखने भी आई। समर्थक वाह-वाह कर रहे थे, और विरोधी भी चमत्कृत हुए बिना नहीं रह रहे थे। यही बात यहाँ निकले राहुल–अखिलेश के रोड शो के विषय मे भी कही जा सकती है।
खोखली शक्ति प्रदर्शन की हद बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी मे देखने को मिली। जहां के सांसद और देश के प्रधामन्त्री इस प्रदर्शन मे कूद पड़े। देर से निकल कर और देर तक रोड शो करके विपक्षी राहुल-अखिलेश-डिम्पल के रोड शो को PM मोदी ने प्रभावित करने का भी काम किया। दोनों ने अपने-अपने रोड शो मे एक  दूसरे से अधिक भीड़ होने की घोषणा भी की।

इस लिए ये रोड शो मतदाताओं को चमत्कृत कर सकेंगे, बहला सकेंगे, फुसला सकेंगे। अपने पक्ष मे मतदान करा सकेंगे, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। हाँ एक चीज जरूर देखने को मिल रही है। इस भीड़ को देख कर संबन्धित राजनीतिक दल का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा नेता जरूर आत्ममुग्ध है।

About Politics Insight