(Pi Bureau)
शुरू हुए आज चार महीने पूरे हो गए. युद्ध आज भी उसी रफ्तार से जारी है जिस रफ्तार से शुरू हुआ था. यूक्रेन के शहर के शहर तबाह हुए पड़े हैं लेकिन युद्ध का न तो कोई नतीजा निकलता दिख रहा है और न ही शांति की बात आगे बढ़ रही है.’युद्ध में जीत का मूलमंत्र है रफ्तार… शत्रु युद्ध के लिए तैयार न हो तो इस अवस्था का लाभ उठाएं. उस रास्ते से आगे बढ़ें दुश्मन को जिसकी भनक तक न हो. उन स्थानों पर सबसे पहले धावा बोलें जहां दुश्मन सुरक्षा की दृष्टि से सबसे कमजोर हो…’
जब 24 फरवरी 2022 को सुबह-सुबह जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर हमले का औपचारिक ऐलान किया था तब तक रूसी वायुसेना यूक्रेन के सौ से अधिक मिलिटरी अड्डों पर कुछ ही मिनट पहले बमबारी कर चुकी थी, सीमा के प्रहरियों और बाड़बंदी की ताकत को मसल रूसी सेना की टुकड़ियां यूक्रेन के शहरों में घुस चुकी थीं, राजधानी कीव पर बमवर्षक विमान बमबारी शुरू कर चुके थे. पुतिन ने जंग का ऐलान किया और कहा कि यूक्रेन की सेना हथियार डाले और घर जाए तभी बच पाएंगे सैनिक.
जंग के इस ऐलान के बाद एक पल को दुनिया को लगा कि युद्ध बस कुछ घंटों की बात है और यूक्रेन सरेंडर करने ही जा रहा है. वर्ल्ड पावर रूस के खिलाफ आखिर कितनी देर टिक पाएगा यूक्रेन? अमेरिकी खुफिया एजेंसी तक का अनुमान था कि जेलेंस्की की सेना कुछ दिनों में सरेंडर कर देगी और राजधानी कीव बस कुछ दिन के अंदर रूसी सेना के कब्जे में होगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दुनिया को चौंकाते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने मैदान नहीं छोड़ा, बल्कि जनता को साथ लेकर सैनिकों के साथ युद्ध के मोर्चे पर डट गए. तब का दिन है और आज चार महीने बाद का यूक्रेन. शहर के शहर तबाह हो गए, 80 लाख लोग देश छोड़कर भाग गए, लेकिन यूक्रेन ने सरेंडर नहीं किया और आज 100 से अधिक मोर्चों पर यूक्रेन की सेना और हथियार उठाए आम लोग और दुनिया भर से आए वॉलंटियर लड़ाके रूसी सेना का मुकाबला जमकर कर रहे हैं.
युद्ध नई दिशा की ओर
रूस-यूक्रेन की जंग अब दोधारी तलवार पर चलने वाली स्थिति में आ चुकी है. मारियूपोल जैसे शहर को कब्जे में लेने के बाद रूस ने यूक्रेन में अपनी रणनीति बदल ली है. राजधानी कीव को छोड़कर पूर्वी यूक्रेन पर अपना कब्जा पुख्ता करने में रूस जुट गया है. सेवेरोदोनेस्क व लिसिचंस्क जैसे शहरों को रूसी सैनिक घेरे हुए हैं. खारकीव पर पकड़ मजबूत कर रूस डोनबास के इलाके में घेरा मजबूत करने में जुटा है ताकि जरूरत पड़ने पर यूक्रेन के एक हिस्से को काटकर अलग देश घोषित कर सके. खेरसान और मेलिटोपोल जैसे शहरों में नागरिकों को रूसी पासपोर्ट तक जारी करने का दावा स्थानीय प्रशासन की ओर से किया जा रहा है. एक्सपर्ट इसे इस बात का संकेत बता रहे हैं कि रूस जल्दी इस इलाके को खाली करने के मूड में नहीं दिख रहा.
क्या अब दूसरे देश भी बनेंगे युद्ध का निशाना?
यूरोप की गैस सप्लाई काटकर रूस ने यूक्रेन की मदद कर रहे देशों पर भी दबाव बढ़ा दिया है. दूसरी ओर फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल होने की कोशिशों को लेकर रूस ने चेताया है जबकि सहयोगी देश बेलारूस से सटे लिथुआनिया पर कभी भी रूसी हमले का अंदेशा जताया जा रहा है. लिथुआनिया बचाव के लिए जंग की तैयारियों में जुट गया है. यूक्रेन को हथियार सप्लाई कर रहे नाटो मेंबर देश लिथुआनिया के पास सिर्फ 16 हजार की सेना है और अगर रूस हमला करता है तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. अमेरिका ने लिथुआनिया पर हमले के अंदेशों के बीच रूस को चेताते हुए कहा है कि लिथुआनिया पर हमले को नाटो पर हमला माना जाएगा और नाटो देश उसका कड़ा जवाब देंगे.
कहां तक बिगड़ सकते हैं हालात?
ऐसे में धीरे-धीरे ये युद्ध यूक्रेन से निकलकर कई देशों की ओर फैलता हुआ दिख रहा है. क्योंकि लिथुआनिया पार करते ही पोलैंड की सीमा शुरू हो जाती है. जिसकी जमीन का इस्तेमाल कर अमेरिका और यूरोप के देश यूक्रेन को हथियार और बाकी मदद पहुंचा रहे हैं. लिथुआनिया के रूसी कब्जे में जाते ही पोलैंड पर हमले का खतरा बढ़ जाएगा. उधर यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की बैठक में यूक्रेन को सदस्यता के लिए ग्रीन सिग्नल मिलने की उम्मीद बढ़ गई है और ऐसा होते ही रूस फिर यूरोपीय संघ के खिलाफ कोई भी कदम उठा सकता है. ऐसे में हालात ये बन रहे हैं कि लिथुआनिया, स्वीडन, फिनलैंड या किसी और यूक्रेन समर्थक देश पर अगर रूस कोई एक्शन लेता है तो फिर नाटो देश इस लड़ाई में कूद सकते हैं और तीसरे विश्व युद्ध के हालात या परमाणु हमले के हालात बन सकते हैं.