(Pi Bureau) मुंबई। ‘कड़वी हवा’ का असर या कहें हवा के धोखे का दर्द फिलहाल दिल्ली से बेहतर कौन बता सकता है। लेकिन यहां पर यह बात भी माननी ही होगी कि दिल्ली की रफ्तार को कोई कड़वी-तीखी हवा रोक नहीं सकती। दिल्ली तो अपना मास्क पहनेगी और काम पर पहुंच जाएगी। इस बदलती आबोहवा की असली मार तो किसानों पर पड़ती है।
सालों-साल ये किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाए देखते रहते हैं कि इस बार हवा बदलेगी, बादल लाएगी, बारिश होगी। मगर ज्यादातर मौकों पर बगैर बारिश हुए ही उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है। और हर साल इनकी जमीन में आई दरारें बीते साल के मुकाबले थोड़ी और चौड़ी हो जाती हैं, साथ ही कर्जे के ब्याज की रकम भी बढ़ जाती है। इन सबके बीच जो चीज कम होती है, वो है किसानों की मौत से दूरी। ‘कड़वी हवा’ इन्हीं घटती-बढ़ती दूरियों की कहानी दिखाती है।
फिल्मकार नील माधव पंडा के निर्देशन में बनी आगामी फिल्म ‘कड़वी हवा’ को लेकर कुछ वक्त से काफी बनी हुई है। पिछले दिनों जारी किए फिल्म के ट्रेलर ने दर्शकों को काफी भावुक किया है।
बता दें इस फिल्म में संजय मिश्रा के बेटे ने खेती के लिए कर्ज लिया लेकिन सूखे के कारण फसल अच्छी नहीं हो सकी और अब उसे कर्ज चुकाने की चिन्ता खाये जा रही है। फिल्म के ट्रेलर में संजय मिश्रा का एक डायलॉग है, ‘हमारे यहां जब बच्चा जन्म लेता है तो हाथ में तकदीर की जगह कर्जे की रकम लिख के लाता है’ जो उसकी बेबसी देख आपकी आंखों में आंसू ला देता है।
दूसरा किरदार रणवीर शौरी का है जो एक रिकवरी एजेंट है और ओडिशा से विस्थापित होकर आया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और उसे डर है कि उसका घर कभी भी समुद्र की आगोश में समा जाएगा। रिकवरी एजेंट लोन वसूलना चाहता है ताकि वह अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर ले जा कर सके।