(Pi bureau)
प्रसिद्ध पंजाबी गायक सुरिंदर शिंदा का 20 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद 26 जुलाई को लुधियाना में निधन हो गया। गायक 64 वर्ष के थे और उन्होंने सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर लुधियाना के डीएमसी अस्पताल में अंतिम सांस ली।
पुत्त जट्टा दे, बल्ले-बल्ले शावा-शावा, जेठ नजारे लेंदा, ढोला वे ढोला, खंड दे भुलेखे गुड़ चट गई, ट्रक बिलिया, नवां लै लेया ट्रक तेरे यार ने नी बाबियां दे चल चलिए आदि पंजाबी गीतों की लिस्ट इतनी लंबी है कि गिनना मुश्किल होगा। पंजाबी गीतों को आवाज देने वाले लोकगायक सुरिंदर शिंदा की रूहानी आवाज सदा के लिए खामोश तो हो गई पर उनकी आवाज हमेशा अमर रहेगी। मौत की खबर से पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई।
सुरिंदर शिंदा ने बुधवार सुबह डीएमसी अस्पताल में अंतिम सांस ली, जहां उनका पिछले दस दिनों से इलाज चल रहा था। पंजाबी लोकगायक का एक निजी अस्पताल में आप्रेशन हुआ था। इंफेक्शन बढ़ने और सांस लेने में दिक्कत के बाद उन्हें माडल टाउन के दीप अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां वह एक सप्ताह तक रहे। तबीयत में कोई ज्यादा सुधार न होता देख परिवार ने 15 जुलाई को डीएमसी अस्पताल शिफ्ट कराया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
पंजाबी गायक कुलदीप मानक के रहे हैं सहयोगी सुरिंदर शिंदा पंजाबी गायक कुलदीप मानक के सहयोगी रहे हैं। लुधियाना के अयाली गांव में एक सिख परिवार में उनका जन्म हुआ था। 64 वर्षीय गायक वेंटीलेटर पर थे। सुरिंदर शिंदा को गायकी विरसेे से मिली थी। जब भी उनके पिता गायकी का रियास किया करते तो वह भी उन्हें देख गाना शुरू कर देते। उन्होंने जसवंत भंवरा से गायकी की सीख हासिल की। पंजाबी लोकगायक की गायकी की खासियत ही यह थी कि वह अपने हर गीत में क्लासिकल टच को कायम रखते।