(Pi bureau)
राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूूषण के बीच सड़कों पर जगह जगह बैरिकेडिंग के कारण वाहन चालक बेवजह जाम से जूझने को मजबूर हो रहे हैं। वाहनों की धीमी रफ् प्रदूषण बढ़ाने के अहम कारक हैं।
वायु प्रदूषण की निगरानी करने वाली एजेंसियां भी लगातार कह रही हैं कि यातायात सुचारू रखने के लिए सड़कों पर यातायात कर्मी बढ़ाए जाएं। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस सड़क पर बैरिकेडिंग की जाती है, वहां स्वतः बाटल नेक की स्थिति बन जाती है।
प्रदूषण और जाम की समस्या से बेखबर पुलिस सड़कों पर अपने हिसाब से बैरिकेडिंग कर रही है। इसी सप्ताह लगातार दो दिन तक अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के सामने दिल्ली-नोएडा मार्ग पर बैरिकेडिंग की गई। यहां डार्क स्पाट भी है।
इसी तरह विकास मार्ग पर पूर्वी दिल्ली को जाने वाली सड़क पर किया जा रहा है। यहां दिन में भी बैरिकेडिंग की जा रही है। इस दौरान वाहनों की धिमी गति के कारण लंबा जाम लग रहा है। लेकिन, जाम और उसके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव से बेखबर पुलिसकर्मी बैरिकेड के पास खड़े रहते हैं।
इंस्टीट्यूट आफ ट्रैफिक एजुकेशन एंड कालेज आफ ट्रैफिक मैनेजमेंट के प्रमुख डा. रोहित बलुजा ने कहा कि पुलिस इस तरह की बैरिकेडिंग अपराधी या वाहन को पकड़ने के लिए या ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए करती है। लेकिन, यह काफी पुराना तरीका हो गया।
इससे प्रदूषण तो बढ़ता ही है, साथ में लेन ड्राइविंग का उल्लंघन होता है। जाम से निकलने के बाद वाहन चालक तेज रफ्तार से आगे की यात्रा करने लगता है, इससे रोडरेज की घटना बढ़ने की आशंका रहती है।
केंद्रीय सडक अनुसंधान संस्थान के ट्रैफिक इंजीनियरिंग व सुरक्षा डिवीजन के मुख्य विज्ञानी और विभागाध्यक्ष डा. एस वेल्मुरुगन ने कहा कि अगर पुलिस को किसी वाहन या अपराधी को पकड़ना है तो उसके पास जगह जगह लगे कैमरे का एक्सेस है। उससे पकड़ा जा सकता है। साथ ही फेस रिकग्निशन कैमरे लगाए जाएं। कोई वाहन चिह्नित है तो उसे लाल बत्ती पर भी पुलिस पकड़ सकती है। बैरिकेडिंग से आम वाहन चालकों की समस्या बढ़ती है।
इस मामले पर पुर्वी जिला के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त अचिन गर्ग ने कहा कि अक्षरधाम के पास हाइवे का निर्माण कार्य चल रहा है। जिस कारण अंधेरा रहता है। लाइट की व्यवस्था की ज़िम्मेदारी बीएसईएस की है। वाहनों की जांच के लिए ज़िगज़ैग तरीके से बैरिकेड लगाए जाते हैं। जाम लगने की स्थिति में बैरिकेड को हटा लिया जाता है।