(Pi Bureau)
उत्तर प्रदेश में जहां हर विभाग में 22 जनवरी 2024 को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया गया है। वहीं उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय और प्रदेश के अधीनस्थ न्यायालयों में इस दिन अभी तक अवकाश घोषित नहीं किया गया है। जिस कोर्ट के आदेश से प्रभु श्री राम और राम भक्तों को न्याय मिला उसी कोर्ट के कर्मचारी इस ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का हिस्सा ना बन पाने के संशय से अत्यंत दुखी हैं ।
सुनने में यह भी आ रहा है कि इसी दिन 22 जनवरी को 138 NI एक्ट से संबंधित वादों के निस्तारण के लिए विशिष्ट लोक अदालत का भी आयोजन किया गया है।
इसी उच्च न्यायालय में भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेई के देहावसान पर पूर्ण दिवस अवकाश घोषित किया गया था, किंतु जब पूरे प्रदेश में और देश में सनातन प्रेमी जनभावना व्याप्त हो रही है तब वही उत्तर प्रदेश की अदालतें अभी तक अवकाश घोषित न करके धर्मनिरपेक्षता की चादर के नीचे सनातन भावना को ढकने का प्रयास कर रही हैं ।
जिस संविधान में प्रभु श्री राम का चित्र स्थापित हो और इस संविधान की रक्षा करने वाली अदालत अपने कर्मचारियों की भावनाओं का आदर करने में संकोच कर रही हैं।
समय-समय पर उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश गणों द्वारा लंबित वादों और मुकदमे के निस्तारण में देरी के लिए चिंता जताई जाती है । तब मात्र एक दिन के अवकाश से अवकाश न करने से कितने वादों का निस्तारण हो जाएगा या कितनी लंबित पत्रावलियों की संख्याएं घट जाएंगी। इसका अनुमान सहज लगाना मुश्किल है। जब अधिकांश जनमानस को यह पता है कि प्रदेश में 22 जनवरी 2024 को अवकाश है और जगह-जगह श्री राम शोभा यात्रा भजन कीर्तन पूजन भंडारे आदि का आयोजन हो रहा है तब उस दिन अनेकों पक्षकार भी न्यायालय जाने से परहेज करेंगे ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय में अभी तक अवकाश घोषित न होना सोच से परे है। यह बात भी विचारणीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय में प्रत्येक चतुर्थ शनिवार को मात्र न्यायिक अधिकारियों के लिए अवकाश घोषित है किंतु कर्मचारियों के लिए किसी भी प्रकार का अवकाश नहीं है जो कि कहीं ना कहीं अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों के संविधान के समक्ष मानवीय मूल्यों की समानता के अधिकारों से विपरीत प्रतीत होता है।
एक न्यायालय कर्मी के कलम से निकली पीड़ा