लोकसभा चुनाव:: अखिलेश के पीडीए प्लान पर भारी पड़ी मोदी की रणनीति !!!

(Pi Bureau)

2024 के लोकसभा चुनाव में जनता का वोट पाने के लिए भाजपा के पास बताने के लिए बहुत कुछ है। राम मंदिर निर्माण, मोदी सरकार के दस साल में अर्थव्यवस्था की बेहतर स्थिति, मूलभूत ढांचे का तेज निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और कल्याणकारी योजनाओं के जरिए करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाना इसमें शामिल है। लेकिन विपक्ष अभी भी केवल जातिगत जनगणना के मुद्दे के सहारे मोदी को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अपनी उम्मीदवारों की पहली सूची में ही भाजपा ने विपक्ष के इस दांव को ध्वस्त करने का इरादा दिखा दिया है। पार्टी ने पहली सूची के 195 उम्मीदवारों में 103 उम्मीदवार पिछड़ा, अनुसूचित जनजाति, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग से उतारा है। इसमें 57 ओबीसी, 27 एससी, 18 एसटी और एक अल्पसंख्यक उम्मीदवार शामिल है। शेष सीटों पर भी यह क्रम जारी रह सकता है। यानी भाजपा ने अखिलेश यादव के पीडीए प्लान और राहुल गांधी के जातिगत जनगणना दांव को इस तरह से मात देने का प्लान तैयार कर लिया है।

विपक्ष का मुद्दा
विपक्ष के पास मोदी सरकार को लोकसभा चुनावों में चुनौती देने के लिए अभी भी सबसे बड़ा दांव जातिगत जनगणना ही है। अखिलेश यादव पीडीए प्लान (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) से भाजपा को यूपी में रोकने का प्लान बना रहे हैं तो राहुल गांधी अभी भी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में पिछड़े और दलित समुदाय की भारतीय प्रशासनिक और आर्थिक व्यवस्था में भागीदारी की बात कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता अभी भी जातिगत आधारित राजनीतिक दलों का गठन कर अपना अस्तित्व बचाने की कोशिशों में जुटे हैं।

भाजपा का दावा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित सभी पार्टी नेता लगातार यह बता रहे हैं कि सामाजिक समीकरणों का सबसे ज्यादा ध्यान उन्होंने रखा है। केंद्र सरकार में मंत्रियों की हिस्सेदारी के साथ-साथ राज्यों की सरकारों और पार्टी संगठन में भी इन वर्गों को बड़ी और सम्मानजनक भागीदारी दी गई है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आंकड़ों के साथ संसद में यह बताया था कि उनकी पार्टी ने सबसे ज्यादा ओबीसी सांसद, विधायक, मंत्री और अन्य पदाधिकारी दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ओबीसी चेहरे के साथ इस लिस्ट की अगुवाई करते हैं।

‘विपक्ष के पास मुद्दा नहीं’
राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष के पास फिलहाल कोई बड़ा और कारगर मुद्दा नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार के दस साल के कामकाज में उस पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेज रफ्तार में दौड़ रही है। ऐसे में भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्ष ने जातिगत जनगणना जैसा मुद्दा आजमाया है। 1990 के दशक का राजनीतिक मॉडल उसे प्रेरणा दे रहा है जिसमें भाजपा के कमंडल से उपजे माहौल को रोकने के लिए मुलायम सिंह, कांशीराम और लालू प्रसाद यादव ने मंडलवादी राजनीति को कारगर तरीके से आजमाया था।

धीरेंद्र कुमार ने कहा कि हालांकि, बदले दौर की राजनीति में इस मुद्दे के भी बहुत कारगर होने की संभावना नहीं है। लेकिन फिर भी विपक्ष इसी मुद्दे के सहारे मोदी को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। भविष्य में भी वह इसी तरह की रणनीति से आगे बढ़ने की रणनीति अपना सकता है। संभवतः यही देखते हुए भाजपा ने अपनी रणनीति में हर वर्ग को समुचित भागीदारी देते हुए भविष्य में भी विपक्ष की इस रणनीति का उचित जवाब देने की रणनीति अपनाई है।

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