अमेठी में सियासी सूरमाओं ने गंवाई जमानत… 2019 के चुनाव में 28 में से 26 उम्मीदवार न बचा पाए थे !!!

(Pi Bureau)

अमेठी का अपना एक अलग मिजाज है। सियासत का मैदान हो या फिर कुछ और, यहां के मतदाताओं ने हर बार कुछ नया किया है। कभी जीत का रिकॉर्ड बनाया तो कभी सियासी सूरमाओं को ऐसा सबक दे दिया कि वह हार के साथ अपनी जमानत तक गवां बैठे।

चाहे वह मेनका गांधी हो या फिर बसपा के संस्थापक कांशीराम, जनता दल के शरद यादव व आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ चुके डॉ. कुमार विश्वास। इन नेताओं की अमेठी में जमानत तक जब्त हो चुकी है।

वर्ष 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी का पहला चुनाव कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी ने जीता। इस चुनाव में छह उम्मीदवारों में से चार की जमानत जब्त हो गई।

1971 के चुनाव में जीत दर्ज करने वाले कांग्रेस के विद्याधर के अलावा मैदान में उतरे चार अन्य प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा सके। 1977 के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के रवींद्र प्रताप सिंह व कांग्रेस के संजय गांधी को छोड़कर दो अन्य को हार के साथ जमानत तक गंवानी पड़ी।

जब शरद यादव तक नहीं बचा सके जमानत
वैसे तो वर्ष 1980 के चुनाव में 12 उम्मीदवार मैदान में थे। इसमें से कांग्रेस के संजय गांधी ने 57.11 फीसदी मत पाकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में दस उम्मीदवारों को जमानत तक से हाथ धोना पड़ा था। संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद 1981 में हुए उपचुनाव में राजीव गांधी ने जीत दर्ज की थी। मुकाबले में उतरे लोकदल के शरद यादव जमानत तक नहीं बचा सके थे। उन्हें महज 21 हजार 188 वोट ही मिले थे।

विरासत की जंग में मेनका भी चूकीं
वर्ष 1984 के चुनाव का किस्सा काफी रोमांचक है। इस चुनाव में कुल 7 लाख 40 हजार 782 मतदाता थे। इसमें से चार लाख 36 हजार 263 ने मतदान किया था। इस चुनाव में वैसे तो 31 उम्मीदवार मैदान में थे लेकिन, मुख्य मुकाबला कांग्र्रेस के राजीव गांधी व निर्दलीय मेनका गांधी के बीच था। पति की मौत के बाद जेठ के खिलाफ मेनका गांधी का यह पहला चुनाव था। उन्होंने काफी मेहनत किया। गांव-गांव गई। लेकिन, परिणाम अलग था। मेनका गांधी महज 50 हजार 163 मत पर सिमट गईं। इस चुनाव में मेनका गांधी समेत 30 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।

कांशीराम तक की जब्त हो गई जमानत
बोफोर्स मामले के बीच हुआ वर्ष 1989 का चुनाव सियासत में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस चुनाव में अमेठी के मौजूदा सांसद रहे राजीव गांधी के खिलाफ 47 उम्मीदवार मैदान में थे। इस चुनाव में बसपा संस्थापक कांशीराम समेत 46 उम्मीदवारों की जमानत तक नहीं बची थी। इसके बाद 1991 में 40, 1996 में 44, 1998 में 10, 1999 में 25, 2004 में 10 की प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।

सिर्फ जीते उम्मीदवार की बची थी जमानत
वर्ष 2009 के चुनाव में कुल 16 प्रत्याशी मैदान में थे। उस वक्त कुल 6 लाख 46 हजार 650 वोट पड़े थे। इसमें से चार लाख 64 हजार 195 वोट पाकर जीत दर्ज करने वाले राहुल गांधी ही जमानत बचा सके थे। अन्य सभी 15 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। वर्ष 2014 के चुनाव में 35 प्रत्याशी चुनावी रण में थे। कुल आठ लाख 74 हजार 625 मतदाताओं ने वोट डाला था। इसमें से कांग्रेस राहुल गांधी व भाजपा की स्मृति जूबिन इरानी को छोड़कर आप के डॉ. कुमार विश्वास सहित 33 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। वर्ष 2019 के चुनाव में 28 में से 26 उम्मीदवार जमानत गवां बैठे।

विधानसभा चुनाव में 40 की जब्त हुई थी जमानत
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में जिले के चार विधानसभा क्षेत्र में किस्मत आजमाने वाले 48 प्रत्याशियों में महज रनर व विनर को छोड़ 40 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। जिले में भाजपा इकलौती ऐसी पार्टी निकलकर सामने आई थी, जिसके प्रत्याशी सभी सीट पर अपनी जमानत बचाने में सफल थे। तिलोई में कांग्रेस, बसपा व आप, जगदीशपुर में बसपा, सपा व आप, अमेठी में कांग्रेस, बसपा व आप, गौरीगंज में कांग्रेस, बसपा व आप के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी।

क्या है जमानत जब्ती की व्यवस्था
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 158 के अनुसार किसी प्रत्याशी को किसी निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल विधिमान्य मतों की संख्या के छठे भाग या 1/6 से कम वोट मिलते हैं तो उसकी जमानत जब्त मान ली जाती है।

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