….तो इस वजह से भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं अपनों के मतभेद-मनभेद सुलझाना !!!

(Pi Bureau)

करीब एक दशक बाद भाजपा कार्यकर्ताओं फिर से विरोधी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। कहीं टिकट वितरण को लेकर, तो कहीं उपेक्षा को लेकर नाराजगी है। अपनों के मतभेद और मनभेद सुलझाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।

वर्षों से पार्टी के लिए जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं में सरकार बनाने को लेकर उत्साह तो है, पर कुछ बातों को लेकर मलाल भी है। जो वजहें सामने आ रही हैं, उसके मुताबिक जब

भी आगे बढ़ने का मौका आता है, तो उन्हें पीछे धकेल दिया जाता है।

हाल ही में बरेली और घोसी में हुआ वाकया ताजा उदाहरण है। यहां आपसी अंतर्कलह का खुलासा तो खुद प्रत्याशी छत्रपाल गंगवार ने ही सार्वजनिक रूप से कर दिया। वहीं, घोसी में भाजपा स्थानीय पदाधिकारियों ने सहयो सुभासपा के प्रत्याशी अरविंद राजभर खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

उन्हें मनाने के लिए राजभर को घुटनों पर आकर माफी मांगनी पड़ी। अंतर्कलह की आग सिर्फ इन्हीं दो सीटों पर ही सुलग रही है ऐसा भी नहीं है। कई सीटों पर कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। टिकट कटने से खफा सांसद और उनके समर्थक उनकी नाराजगी को हवा दे रहे हैं।

इन सीटों पर दिख रही नाराजगी
वहीं, कई जगहों पर टिकट वितरण में उपेक्षा से आहत जातीय संगठन भी संकट खड़ा करने में जुटे हुए हैं। वहीं, मुजफ्फरनगर में पार्टी के ही विधायक भाजपा प्रत्याशों का विरोध कर रहे हैं। ऐसे ही मेरठ, गाजियाबाद, फतेहपुर सीकरी, पीलीभीत, चंदौली, गाजीपुर, बाराबंकी जैसी कई सीटों पर अंतर्कलह की बातें सामने आ रही हैं। वहीं, पीलीभीत में वरुण गांधी का टिकट कटने से सिख समुदाय खुलेआम नाराजगी जाहिर कर चुका है।

75 सीटों में से 63 पर ही भाजपा ने उतारे प्रत्याशी
अभी तक भाजपा ने अपने कोटे की 75 सीटों में से 63 पर ही प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें से गाजियाबाद, मेरठ, बरेली, पीलीभीत, कानपुर, बदायूं, बाराबंकी, हाथरस और बहराइच के सांसदों के टिकट कटे हैं। हालांकि बहराइच सीट से सांसद अक्षयबर लाल गोंड का टिकट काटा तो उनके बेटे को ही मैदान में उतार दिया। पर, बाकीआठ सीटों पर टिकट कटने से नाराज समर्थक विरोधी स्वर को हवा दे रहे हैं। वहीं, 12 सीटों पर उम्मीदवार उतारने में हो रही देरी के पीछे भी अंदरूनी खींचतान को ही वजह बताया जा रहा है।

संगठन की अनदेखी भी है जिम्मेदार
कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी के बीज प्रदेश संगठन के पुनर्गठन के समय ही पड़ गए थे। राज्य, क्षेत्र और जिला स्तर पर हुई पदाधिकारियों की नियुक्ति में अपनी अनदेखी से पुराने कार्यकर्ता तभी से नाराज बैठे हैं। ये लोग चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।

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