UP:: अति पिछड़ों पर क्यों टिकीं राजनीतिक दलों की निगाहें….!!!

(Pi Bureau)

पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे प्रदेश में चुनाव के दौरान अति पिछड़े वर्ग के मतदाता जिसके साथ हुए, सत्ता उसके हाथ में आ गई। 2007 के विधानसभा चुनाव से 2019 के लोकसभा चुनाव में अति पिछड़ों के मत और समर्थन ने बसपा और सपा की बहुमत की सरकार ही नहीं बनाई, भाजपा को दिल्ली और यूपी की कुर्सी सौंप दी। हालांकि, सच यह भी है कि इस दौरान राजनीतिक दलों ने इस वर्ग के हितों का ध्यान रखने के साथ ही इन बिरादरियों की राजनीतिक भागीदारी भी बढ़ाई है।

इस बार के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों की निगाहें इसी समुदाय पर है। प्रत्याशी चयन से लेकर सभाओं में भी इस समुदाय के सम्मान का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में प्रजापति, सैन, कश्यप, सैनी, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, पाल, पटेल, राजभर, मांझी, तुरहा, गुर्जर, कुर्मी आदि अतिपिछड़ी जातियों में हैं। जाट, कुर्मी और यादव बिरादरी पिछड़ी जातियों में है। अतिपिछड़ी जातियों का पूरब से पश्चिम तक बड़ा वोट बैंक है।

इस बार जाति जनगणना का मुद्दा अहम
लोकसभा चुनाव में भाजपा के अलावा बाकी सभी विपक्षी दल जाति जनगणना के मुद्दे को हवा दे रहे हैं। जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी के आधार पर जाति जनगणना को लेकर ओबीसी जातियों में भी गंभीरता दिख रही है। चुनाव नतीजों के बाद पता चलेगा कि यह मुद्दा कितना प्रभावी रहा।
2007 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने जातिवार भाईचारा कमेटी बनाकर अति पिछड़ी जातियों को अपने साथ खड़ा कर लिया। दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ों का साथ मिलने से बसपा ने सरकार बनाई। बाद में अलग-अलग कारणों से पिछड़े, अति पिछड़े, और अल्पसंख्यक पार्टी से छिटकते चले गए। नतीजा, 2022 तक बसपा विधानसभा चुनावों में एक सीट पर ही सिमट गई। 2019 में सपा से गठबंधन के बाद बसपा के 10 सांसद चुने गए थे।

2012 में सपा पर जताया भरोसा
सपा को ओबीसी की पार्टी कहा जाता है। सपा ने पिछड़ों को साथ लेकर 2012 के चुनाव में जीत हासिल की और अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। बाद में मुसलमानों और यादवों को ही ज्यादा तरजीह के चलते अति पिछड़ी जातियों ने सपा से दूरी बनानी शुरू कर दी। भाजपा ने प्रदेश की कमान केशव प्रसाद मौर्य को देकर इसका लाभ उठाया और अति पिछड़ों को अपनी ओर मोड़ लिया।

2014 से भाजपा संग खड़े हो गए
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के रूप में ओबीसी चेहरा प्रस्तुत कर पूरे देश के पिछड़े और अति पिछड़ों को अपने साथ जोड़ने की मुहिम शुरू की। ओबीसी जातियों का साथ पाकर पार्टी ने 543 में से 282 सीटें जीतकर सरकार बनाई। बाद में 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ओबीसी मतदाता भाजपा के साथ खड़े दिखे। भाजपा ने 303 सीटें जीतकर फिर सरकार बनाई। इसी दौरान ओबीसी के साथ से भाजपा ने 2017 और 2022 में यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।

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