बड़ी खबर:: NGT ने UP के 2 निगमों पर ठोका 65 करोड़ का जुर्माना, जानिए क्या हैं पूरा मामला !!!

(Pi Bureau)

नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल ने यमुना नदी में लगातार फैल रहे प्रदूषण को रोकने में विफल रहने पर उत्‍तर प्रदेश को दो निगम निकायों पर एक्‍शन लिया है. एनजीटी ने इसे घोर उल्‍लंघन मानते हुए आगरा और मथुरा वृंदावन नगर निगम पर 65 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. ग्रीन पैनल ने अनुपचारित सीवेज के निर्वहन के कारण आगरा और मथुरा-वृंदावन में यमुना के प्रदूषण के संबंध में दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था.

ग्रीन ट्रिब्‍यूनल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और उनके साथ मौजूद न्यायमूर्ति सुधीर की बेंच ने कहा, ”हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि यमुना नदी की जल पारिस्थितिकी की सुरक्षा और उसकी सफाई राज्य का वैधानिक और संवैधानिक दायित्व था, लेकिन वह इसे पूरा करने में बुरी तरह विफल रहा है. आगरा और मथुरा-वृंदावन में स्थानीय निकाय जैसे वैधानिक निकाय यमुना नदी में प्रदूषित सामग्री के निर्वहन को रोकने में विफल रहे हैं और भारी मात्रा में प्रदूषित सीवर छोड़ कर इसे प्रदूषित होने दिया है.”

नियमों का घोर उल्‍लंघन…
200 पन्नों के फैसले में, बेंच ने कहा कि दोनों स्थानों के नगर निगम और उनके सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र (एसटीपी) का संचालन करने वाली एजेंसियों ने निर्वहन को रोककर जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया है. ट्रिब्यूनल ने कहा कि आगरा नगर निकाय ने भी अपेक्षित सहमति के बिना स्थापित दो एसटीपी का संचालन करके अधिनियम का उल्लंघन किया.

यमुना नदी को लोगों ने गंदा किया…
ट्रिब्यूनल ने कहा, “संबंधित अधिकारियों की ओर से जल अधिनियम के प्रावधानों का घोर उल्लंघन है और वे परिणामी, निवारक, दंडात्मक और उपचारात्मक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हैं. यमुना नदी भगवान के कृत्य से प्रदूषित नहीं हुई है, बल्कि यह मानव निर्मित है. इससे भी अधिक, अधिकारियों की लापरवाही, नदी के प्रति ईमानदारी, चिंता और श्रद्धा की कमी के कारण, जो लगातार सीवेज के माध्यम से प्रदूषित सामग्री का निर्वहन कर रहे हैं.

UPPCB को देनी होगी राशि…
इसमें कहा गया है कि “प्रदूषक भुगतान सिद्धांत” के आधार पर, आगरा नगर निगम पर 58.39 करोड़ और मथुरा-वृंदावन नगर निगम पर 7.20 करोड़ रुपये का पर्यावरण मुआवजा देने का दायित्‍व है. ट्रिब्यूनल ने कहा कि कुल 65.59 करोड़ रुपये की राशि नगर निगमों को तीन महीने के भीतर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को जमा करनी होगी.

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