(Pi Bureau)
रीना एन सिंह
एडवोकेट।
नभ में न कुटी बन पाती,
मैंने कितनी युक्ति लगायी,
आधी मिटती कभी कल्पना,
कभी उजड़ती बनी-बनायी ।
दिनकर जी की ये पंक्तियाँ आरएसएस पर आज सटीक बैठ रहीं हैं, जिस संगठन ने भाजपा को सशक्त बनाया , उसी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कह दिया की अब भाजपा को आरएसएस की आवश्यकता नहीं हैं क्यूंकि आज की भाजपा अपने आप मे पूर्ण हैं। इतिहास गवाह हैं की जनता पार्टी और जन संघ मे मतभेद के कारण ही भाजपा की स्थापना हुई और अब शायद समय आ गया हैं की देश मे योगी आदित्यनाथ को हिन्दुत्व का सबसे मजबूत चेहरा घोषित कर देना चाहिए। किसी भी एक प्रधानमंत्री के कार्यकाल के लिए 10 वर्षों का समय अपने आप मे पर्याप्त हैं और वह भी उस देश मे जहाँ की जनसँख्या 140 करोड़ को पार कर गई हैं। लोकतंत्र मे जब किसी राजनितिक पार्टी से सत्ता के घमंड की बू आने लगे तो निश्चित है की जनता किनारे होना शुरू हो जाएगी, लोक सभा चुनावों मे भाजपा के खिलाफ क्षत्रियों ने मोर्चा खोला हुआ है तो दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री किसी तरह जेल से जमानत पर चुनाव प्रचार के लिए बाहर आये तो योगी आदित्यनाथ को आगे रख कर आक्रामक रुख दिखाया , वैसे भी जिस तरह से भाजपा ने बड़े -बड़े दिग्गज नेताओं को किनारे लगाया है , देश भर मे योगी आदित्यनाथ को लेकर भी अटकलों का दौर जारी है , अलग- अलग कयास लगाए जा रहे हैं की चार जून के बाद अगर भाजपा सत्ता मे वापसी करती है तो सबसे पहले योगी जी को बदला जायेगा , भाजपा की कुछ चुनावी सभाओं और रैलियों मे जिस तरह से योगी आदित्यनाथ को पोस्टरों मे जगह नहीं मिली उससे तो काफी स्पष्ट है की दाल मे कुछ काला है , उत्तर प्रदेश मे लोक सभा सीटों के बटवारे मे भी योगी जी की नहीं चली , ऐसी परिस्थिति मे भाजपा मे आना वाला समय योगी आदित्यनाथ के लिए संघर्षों से भरा होगा इस पर कोई शक नहीं है , पार्टी का एक बड़ा गुट योगी के खिलाफ मोर्चा खोले है , तो ऐसे समय मे गोरखनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ को ठोस निर्णय के लिए तैयार रहना होगा और वैसे भी भाजपा के बड़े नेता ही बाबा के दुश्मन बन उन्हे वापिस मठ भेजने की बात दबी आवाज मे करते हैं ,अगर पार्टी मे योगी के कद को कम किया जाता है तो ऐसे मे योगी आदित्यनाथ के पास एक ही विकल्प बचता है की, वह अपने पुराने संगठन हिन्दू युवा वाहिनी को एक सामाजिक संगठन से बदलकर राजनीतिक पार्टी के रूप मे स्थापित करें और आरएसएस योगी आदित्यनाथ का खुल कर समर्थन और सहयोग करे। हिन्दू युवा वाहिनी अपनी आक्रामक हिन्दू वादी छवि के लिए जानी जाती थी , जिसे 2017 मे योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद ठंडे बस्ते मे डाल दिया गया। अगर आंकलन करें तो पाएंगे की नाथ सम्प्रदाय के कारण हिन्दू युवा वाहिनी की उपस्थिति देश के हर राज्य मे हैं , या यूँ कहें की नाथ सम्प्रदाय का एक बड़ा हिस्सा सम्पूर्ण देश मे बसता है , जैसे बंगाल मे बाबा कनीफनाथ के समर्थक हैं , सीकर राजस्थान मे श्रद्धानाथ जी , गुजरात मे धर्मनाथ ,पंजाब मे रतनाथ , हरियाणा मे मस्तनाथ ,यही नहीं पूर्वोत्तर के अन्य राज्य हों या दक्षिण भारत का तमिल नाडु राज्य जहाँ नाथपंथी संप्रदाय से जुड़े उज्जैन के महान राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भर्तृहरि जो बाद में वह पट्टीनाथर (स्वेथरन्यार या पट्टीनाथु चेट्टियार, पूमपुहार, तमिलनाडु के इस संत का पूर्वाश्रम नाम है) के शिष्य बन गए। नाथ शब्द महादेव शिव तथा शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है जैसे गुजरात के सोमनाथ , झारखण्ड के बैजनाथ , केदारनाथ -बद्रीनाथ धाम आदि और यहाँ तक की सिआलकोट पाकिस्तान मे गुरु चौरंगीनाथ जी के नाम से मठ की पहचान हैं। गोरखनाथ मठ केवल सियासत तक सीमित नहीं है, बल्कि जिस गोरखनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ हैं, उसकी चार पीढ़ियों का अयोध्या राम मंदिर से खास जुड़ाव एवं मंदिर निर्माण के लिए प्रबल योगदान है, राम मंदिर निर्माण को लेकर योगी आदित्यनाथ के दादा ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी ने देश की आज़ादी से पहले ही राम मंदिर निर्माण की बात तब की थी जब धर्मनिरपेक्षता का नारा जोरों पर था, उस समय हिंदुत्व की बात करना मुसीबत मोल लेने जैसा था, लेकिन वह राम मंदिर आंदोलन की मुखर और निडर आवाज बने और इस आंदोलन को मजबूत किया। योगी आदित्यनाथ महंत अवेद्यनाथ के शिष्य हैं, जिन्होने दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम से हिन्दुओं के जबरन धर्मपरिवर्तन के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इतिहास गवाह हैं की एक निश्चित अवधि के दौरान, नाथ योगियों का एक समूह , योद्धा तपस्वी संप्रदाय बन गया, लोगों के एक छोटे समूह ने खुद को शास्त्र-धारी (शास्त्रों के रखवाले) और अस्त्र-धारी (हथियारों के रखवाले) कहना शुरू कर दिया ,पिछले लगभग सौ वर्षों के दौरान, गोरखनाथ मठ नाथ परंपरा की परंपरागत शिक्षाओं के मार्ग पर चलते हुए सनातन धर्म की रक्षा के लिए आगे आया , यही वो दुर्भाग्यपूर्ण समय था जब भारत का धर्म के नाम पर बटवारा हुआ, वह समय ऐसा था जब विदेशी राज और मुग़ल आक्रांताओं के ज़ख़्मों से सनातन धर्म की आत्मा भी घायल थी, उसी समय गोरखनाथ पीठ ने गौरक्षा, अर्ध-उग्रवाद, धर्म परिवर्तन तथा हिंदुत्व के मुद्दों को आत्मसात करते हुए धर्म की रक्षा का संकल्प लिया। वर्ष 1984 में महंत अवेद्यनाथ को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का अध्यक्ष चुना गया, उनके नेतृत्व में एक ऐसे आंदोलन का जन्म हुआ जिसने सामाजिक-राजनीतिक क्रांति का बिगुल बजाया। अब उनके शिष्य योगीआदित्यनाथ के मुख्यमंत्री कार्यकाल में बहुप्रतीक्षित राम मंदिर का निर्माण हुआ और हिन्दुओं के 500 वर्षों के संघर्ष के बाद रामलला राम मंदिर मे विराजे ।, दशकों बाद भाजपा ने राम मंदिर के नाम पर जो सत्ता पायी उसका असली श्रेय गोरखनाथ मठ को जाता हैं , अगर योगी आदित्यनाथ जी के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी ने किसी राजनितिक दल का गठन किया होता तो निश्चित ही आज वह राजनितिक दल मील का पत्थर साबित होता और देश का इतिहास , वर्तमान और भविष्य कुछ और ही होता , वर्तमान स्थिति का आंकलन करते हुए योगी आदित्यनाथ को देश और हिंदुत्व की सुरक्षा एवं विकास के लिए किसी भी ठोस निर्णय लेने से पीछे नहीं हटना चाहिए और जरुरत पड़े तो दूरगामी सोच का परिचय देते हुए अपना एक नया राजनीतिक दल स्थापित कर सनातन के केसरिया ध्वज को चिर काल तक के लिए सशक्त करना चाहिए , वर्तमान मे जो राजनीतिक जटिलताएं बन कर उभरी हैं उनसे स्पष्ट हैं की भविष्य मे हिंदुत्व को मजबूत करने के लिए आरएसएस को योगी आदित्यनाथ का निर्विरोध समर्थन कर उन्हे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाना होगा , जैसे ही योगी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया जायेगा इसमे कोई शक नहीं की देश की जनता योगी आदित्यनाथ को हाथों हाथ ले कर प्रधानमंत्री पद पर बिठा देगी।
(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता व योगी आदित्यनाथ लोक कल्याण के पथ पर नामक पुस्तक की लेखिका हैं।)