(Pi Bureau)
बुनकरों के ताने-बाने के लिए मशहूर मऊ जिले की घोसी लोकसभा सीट पर सियासी पारा चरम पर है। बसपा से इस सीट को छीनने के लिए पक्ष और विपक्ष ‘करो या मरो’ की तर्ज पर जूझ रहे हैं। सिर्फ एक बार ही घोसी में कमल खिलाने में कामयाब हो पाई भाजपा भले ही इस बार खुद मैदान में न उतरी हो, लेकिन उसकी ही प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा दांव पर है।
बहरहाल, विकास और बेरोजगारी जैसे मुद्दों का शोर धीमा पड़ने लगा है और दोनों गठबंधनों का पूरा फोकस जातीय समीकरणों पर आ टिका है। बदले समीकरणों में जंग एनडीए-इंडिया के बीच सिमट गई है।
भाजपा घोसी सीट पर अपने सहयोगी सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के पुत्र अरविंद राजभर को चुनाव लडा रही है। वहीं, सपा ने राजीव राय को उम्मीदवार बनाया है। 2014 में उन्हें यहां 15.96 फीसदी वोट मिले थे। बसपा ने यहां से दो बार सांसद रह चुके बालकृष्ण चौहान पर दांव लगाया है। हालांकि बदले समीकरणों में राय और राजभर के बीच सिमटी इस जंग में ओम प्रकाश राजभर की साख दांव पर है।
2017 के विधानसभा चुनाव में मऊ सदर से 88 हजार से अधिक वोट पाने वाले महेंद्र ओपी राजभर से मनमुटाव के चलते सुभासपा का दामन छोड़ सपा के साथ खड़े हो गए हैं। इस क्षेत्र में महेंद्र का अपनी बिरादरी पर बड़ा प्रभाव माना जाता है। इससे भी सुभासपा की चुनौती बढ़ गई है।
मुख्तार अंसारी की मौत में आरोपों के एंगल ने भी यहां की राजनीति गरमा दी है। मऊ और घोसी विधानसभा क्षेत्र में मुख्तार अंसारी के परिवार का असर है। मऊ से बेटा अब्बास अंसारी सुभासपा के सिंबल पर विधायक है। वहीं 2017 में अब्बास ने घोसी से चुनाव लड़ा था और 81 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे।
मुख्तार को श्रद्धांजलि देने अखिलेश यादव घर तक गए थे। इसलिए सपा इसे मुस्लिम वोटों की गोलबंदी के अवसर के तौर पर देख रही है। मुख्तार के मुद्दे पर प्रतिक्रियात्मक ध्रुवीकरण होने के आसार हैं। बसपा ने पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को उम्मीदवार बनाकर पिछड़े वोटों में बंटवारे की राह खोल सुभासपा के लिए संकट और बढ़ा दिया है।
इस सीट पर राजभर बिरादरी प्रभावी भूमिका में है। बहरहाल ओपी राजभर हाल ही में बिच्छेलाल राजभर को एमएलसी बनाकर अपने जातीय समीकरण को दुरुस्त करने की कोशिश में जुटे हैं।
मुद्दों पर मुखर मतदाता
अब बात मुद्दों की। राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों पर मैंने जनता का मन टटोलने की कोशिश की तो युवा वर्ग में सबसे अधिक रोष पेपर लीक को लेकर दिखा। मऊ सदर विधानसभा क्षेत्र के ताजोपुर बाजार के डुमराव मोड़ पर चाय की दुकान पर मिले सुरेमन राजभर सवाल उठाते हैं, जब सरकारी नौकरी नहीं है, तो भर्ती के नाम पर फाॅर्म भरने का पैसा क्यों लिया जा रहा है?
अंकित सोनकर कहते हैं, सरकारी नौकरी सबका सपना होता है। लेकिन यहां तो फाॅर्म पर भी जीएसटी वसूला जा रहा है। व्यापारी रामनिहोर बरनवाल का मानना है कि इस चुनाव में जीएसटी, महंगाई और बेरोजगारी ही मुद्दा है।
पक्ष-विपक्ष में खूब तर्क-वितर्क
सभासद रह चुके रमेश सोनकर कहते हैं, कुछ लोग ऐसे हैं चाहे कितना भी देश में काम हो जाए, वे सवाल ही उठाएंगे। इस सरकार में काफी विकास का काम हुआ है। जो पार्टी काम करेगी, जनता उसे ही अपना सांसद चुनेगी।
लालचंद ने कहा कि एक आम जनता को जो चाहिए वह सरकार कर रही है। सड़क, रेलवे, बिजली, रोटी और परिवहन सबकुछ सरकार ने दिया है। नरेंद्र सिंह का मानना है कि भाजपा इस बार 400 पार रहेगी। इससे जो काम छूटा है, वह भी पूरा हो जाएगा। जनसंख्या नियंत्रण भी एक मुद्दा है।
शमशेर कहते हैं कि गठबंधन घोसी में काफी मजबूती से लड़ रहा है। 10 साल में भाजपा की सरकार देख चुके हैं, अब बदलाव करना चाहते हैं। वह कहते हैं, यहां सुबह-शाम चाय पर खूब चर्चा होती है। सुबह-शाम की चर्चा में अलग-अलग लोग मिलते हैं। सबके विचार अलग हैं। इस बार घोसी में गठबंधन का प्रत्याशी ही सांसद बनेगा।
राजभर के पुराने बयानों की भी हो रही समीक्षा
सुभासपा भले ही भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, पर मुख्यमंत्री और सवर्णों के खिलाफ 2022 के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर के बयानों की भी खूब चर्चा हो रही है। विपक्ष उन बयानों को लेकर सवर्ण मतदाताओं में सेंधमारी की कोशिश में जुटा है। हालांकि राजभर के साथ ही भाजपा के नेता लोगों को समझाने में जुटे हैं।
विधानसभा सीटों का समीकरण भी बड़ी चुनौती
घोसी सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से मऊ सदर, घोसी, मोहम्मदाबाद गोहना और मधुबन मऊ जिले की हैं, जबकि रसड़ा बलिया जिले की। मऊ सदर और मोहम्मदाबाद गोहना पर सपा का कब्जा है। वहीं, घोसी सीट पर सुभासपा, रसड़ा पर बसपा और मधुबन पर भाजपा काबिज है। इस लिहाज से दोनों गठबंधन के लिए पांचों विधानसभा क्षेत्रों का सियासी समीकरण साधना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।