(Pi Bureau)
उत्तर प्रदेश में मंगलवार को हो रही लोकसभा चुनाव की काउंटिंग में सपा 4 सीटें जीत चुकी है और 34 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. बीजेपी को करारा झटका लगा है और पार्टी 6 सीटें जीत चुकी है और 26 पर आगे है. बीजेपी ने प्रदेश की सभी 80 सीट जीतने का दावा किया था लेकिन परिणाम इसके उलट नजर आ रहे हैं. सपा ने पिछला लोकसभा चुनाव बसपा के लड़ा था और पांच सीट जीती थी. इस बार अखिलेश की पार्टी ने प्रदेश में बीजेपी को तगड़ा झटका दिया है. बीजेपी ने 2019 में 62 सीट जीती थीं. आइये जानते हैं वो 5 कारण जिनके चलते सपा को अप्रत्याशित जीत मिली:
1. सीट शेयरिंग की सही रणनीति : राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यूपी में अखिलेश यादव ने विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया. सपा ने गठबंधन के तहत 62 सीट पर चुनाव लड़ा और शेष सीट कांग्रेस तथा अन्य दलों के लिए छोड़ दीं. सीट शेयरिंग की रणनीति काम आई.
2. पूरे परिवार ने दिखाई एकजुटता : 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा का कुनबा बिखरा हुआ था. चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा. परिवार में आपकी कलह का खामियाजा अखिलेश को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा था. इस बार यादव फैमिली ने एकजुटता दिखाई. कुछ शिवपाल झुके तो कुछ बातें अखिलेश ने भी मानी. अखिलेश के पूरे परिवार ने चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उठाई.
3. ‘पीडीए’ का फॉर्मूला : अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में ‘पीडीए’ यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फॉर्मूला दिया और इसी फॉर्मूले को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशियों का चयन किया. समाजवादी पार्टी ने 17 सीटों पर दलित, 29 पर ओबीसी, 4 पर मुस्लिम और बाकी पर सवर्ण उम्मीदवार उतारे. गाजीपुर से अफजाल अंसारी, कैराना से इकरा हसन, संभल से जियाउर्रहमान बर्क और रामपुर से मोहिबुल्लाह नदवी पर भरोसा जताकर चुनावी मैदान में उतारा. अखिलेश का यह दांव बिल्कुल सही बैठा और पार्टी को अप्रत्यशित सफलता मिली.
4. पेपर लीक का मुद्दा उठाया : अखिलेश यादव ने चुनाव प्रचार में यूपी में पेपर लीक को मुद्दा बनाया. परीक्षाओं में हो रही देरी को भी जोर-शोर से उठाया. राज्य में पेपर लीक और बेरोजगारी के चलते युवा वोटर नाराज था. अखिलेश ने उनकी नाराजगी को आवाज दी. इतना ही नहीं, अखिलेश ने अग्निवीर योजना को कैंसिल कराने का वादा किया. सपा की जीत में यह भी बड़ा फैक्टर माना जा रहा है.
5. सॉफ्ट हिंदुत्व और सवर्णों वोटों पर नजर : अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों खुद को और अपनी पार्टी दूर रखा. बहुत ही सधे अंदाज में सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि बनाए रखी. अखिलेश ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर सीधे कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इटावा में शिव मंदिर की नींव रख दी. सवर्णों वोटरर्स को साधने के लिए चंदौली से राजपूत और भदोही से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे.