(Pi bureau)
लोकसभा चुनाव में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की रणनीति पर मिली बड़ी सफलता के बाद अब समाजवादी पार्टी ‘मिशन-2027’ में जुट गई है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अब केंद्र की राजनीति करेंगे तो उनके स्थान पर नेता प्रतिपक्ष कौन होगा इसको लेकर पार्टी में मंथन शुरू हो गया है।
पार्टी में फिलहाल तीन नामों पर बहुत गंभीरता से विचार चल रहा है। इनमें शिवपाल सिंह यादव, राम अचल राजभर व इन्द्रजीत सरोज शामिल हैं। तीनों ही पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। सपा अध्यक्ष यह चाहते हैं कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ऐसा व्यक्ति बनाया जाए जिससे ‘पीडीए’ की धार और मजबूत हो सके।
यही कारण है कि पार्टी पिछड़ा या दलित में से किसी एक को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहती है। सबसे प्रबल दावेदार अखिलेश यादव के चाचा व जसवंतनगर के विधायक शिवपाल हैं।
छह बार के विधायक शिवपाल वर्ष 2009 से 2012 तक नेता प्रतिपक्ष रह भी चुके हैं। सपा वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए जातीय समीकरण भी साध रही है। ऐसे में इस पद के लिए पार्टी अति पिछड़े व दलित नेता के नाम पर भी विचार कर रही है।
दलित नेताओं में पांच बार के विधायक इन्द्रजीत सरोज प्रमुख दावेदार हैं। कौशांबी की मंझनपुर सीट के विधायक इन्द्रजीत बसपा की मायावती सरकार में समाज कल्याण मंत्री रह चुके हैं। इस बार इनका बेटा पुष्पेन्द्र सरोज कौशांबी से सांसद चुना गया है।
तीसरा नाम अति पिछड़ी जाति में आने वाले अंबेडकरनगर की अकबरपुर सीट के विधायक राम अचल राजभर का चल रहा है। छह बार के विधायक राजभर मायावती की वर्ष 2007 से 2012 की सरकार में परिवहन मंत्री रह चुके हैं। पिछड़ी जातियों में इनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। सपा अध्यक्ष जल्द ही इनमें से किसी एक को नेता विरोधी दल का दायित्व सौंप सकते हैं।
सपा को दो वर्ष बाद विधान परिषद में अब फिर से नेता प्रतिपक्ष का पद मिल जाएगा। जुलाई 2022 में सपा के 10 प्रतिशत से कम सदस्य रह जाने के कारण यह पद लाल बिहारी यादव से छिन गया था। 100 सीटों वाली विधान परिषद में अब सपा के फिर से 10 सदस्य हो गए हैं, ऐसे में पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का पद मिल जाएगा।
नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली, बलराम यादव व किरण पाल कश्यप का नाम चल रहा है। दरअसल, सपा यदि विधानसभा में यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाती है तो यहां पर गुड्डू जमाली को बना सकती है। जमाली की आजमगढ़ व आस-पास की मुस्लिम आबादी में अच्छी पकड़ मानी जाती है। विधान परिषद में लंबे समय तक सपा ने अहमद हसन को नेता प्रतिपक्ष बनाए रखा था।
यदि विधानसभा में कोई और जाति का बनता है तो यहां पर पूर्व मंत्री बलराम यादव व किरण पाल कश्यप में से किसी एक को बनाया जा सकता है। बलराम यादव भी एमएलसी बनने से पहले छह बार विधायक व तीन बार एमएलसी रह चुके हैं।
अखिलेश सरकार में माध्यमिक शिक्षा मंत्री रहे थे। वहीं, किरण पाल कश्यप मुलायम सिंह की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। रालोद के अलग होने के बाद पश्चिम यूपी को साधने के लिए सपा उन्हें भी यह पद दे सकती है। उनकी कश्यप बिरादरी में अच्छी पकड़ मानी जाती है।