श्रीनगर में गर्मी ने तोड़ा 132 वर्षों का रिकॉर्ड, मौसम विभाग ने दी ये जानकारी

(Pi bureau)

इस वर्ष मानसून की शुरुआत बेशक अच्छी हुई थी, लेकिन जून के बाद जुलाई का महीना ही सूखा ही बीत गया। इन दो महीनों में घाटी में औसत से 60 प्रतिशत से भी कम वर्षा हुई। जून और जुलाई महीने में श्रीनगर में औसतन 120.5 मिलीमीटर बारिश होती है, लेकिन इस वर्ष मात्र 37.7 मिलीमीटर बारिश हुई।

लगातार शुष्क मौसम से प्रचंड गर्मी पड़ी, जिससे घाटी का जनजीवन खासा प्रभावित हुआ। झेलम समेत घाटी के अधिकांश जलस्रोतों में जलस्तर काफी कम हो गया। झेलम में 35 प्रतिशत पानी कम हो गया। इस बीच राहत की बात यह है कि 10 अगस्त तक प्रदेश में लगभग हर दिन वर्षा होने का पूर्वानुमान है।

मौसम विभाग के अनुसार इन दो महीने में घाटी में औसत से 60.67 प्रतिशत कम वर्षा हुई। इनमें श्रीनगर में 69 प्रतिशत, अनंतनाग में 60, बड़गाम में 71, बांडीपुर में 73, कुपवाड़ा में 65, कुलगाम में 75, बारामूला में 59, गांदरबल में 58 प्रतिशत, पुलवामा में 61 और शोपियां में 85 प्रतिशत कम वर्षा रिकार्ड हुई।

घाटी में रुक-रुक कर वर्षा

जून और जुलाई में घाटी में मौसम शुष्क ही रहा। इससे श्रीनगर समेत अधिकांश इलाकों में तापमान सामान्य से कई डिग्री ऊपर बना रहा। समूची घाटी में प्रचंड गर्मी पड़ी। श्रीनगर में गर्मी ने 132 वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया। जिले में अधिकतम तापमान 36 डिग्री के पार चला गया था।

दो तीन दिनों से घाटी में रुक-रुक कर वर्षा हो रही है। लेकिन इसके बावजूद मौसम में कोई बड़ा परिवर्तन देखने को नहीं मिला। मौसम विभाग ने 10 अगस्त तक मौनसून के सक्रिय रहने से गरज के साथ वर्षा की संभावना है।

चिलचिलाती धूप से बेहाल

शुक्रवार को घाटी के कुछ इलाकों में हलकी वर्षा हुई। हालांकि श्रीनगर समेत अधिकांश इलाकों में मौसम शुष्क रहा। हालांकि दिन में कई बार बादल छाए।

वहीं दूसरी ओर जम्मू में शुक्रवार की सुबह मौसम साफ रहा। दोपहर होते-होते चिलचिलाती धूप ने बेहाल किया। गुरुवार को वर्षा के बाद गर्मी से राहत मिलने के बाद पारा फिर उछल गया।

 

सिस्टम स्थापित करने की योजना

जम्मू कश्मीर में ग्लेशियर झीलों के फटने से अचानक आने वाली बाढ़ से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सहयोग पूर्व चेतावनी सिस्टम स्थापित करने की योजना बना रहा है।

मुख्य सचिव अटल डुल्लू के निर्देश पर कश्मीर विश्वविद्यालय के जियोग्राफी और आपदा प्रबंधन विभाग की टीम ने आपदा प्रबंधन राहत पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग के साथ हाल ही में शेषनाग और सोनासर ग्लेशियर झीलों का फील्ड दौरा किया।

टीम का नेतृत्व जियोग्राफी विभाग और आपदा प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर परवेज अहमद ने किया। टीम ग्लेशियर झीलों के फटने से पैदा होने वाली बाढ़ से पैदा होने वाले हालात पर विचार कर रही है।

 

इस कमेटी का नेतृत्व गृह विभाग के प्रमुख सचिव चंद्राकर भारती कर रहे हैं क्षेत्रीय दौरा करने के बाद टीम ने अपनी प्रेजेंटेशन दी, जिसमें कहा गया कि अगले चरण में विभाग राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और तकनीकी सहयोगी के सहयोग से पूर्व चेतावनी सिस्टम स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिससे यह पता चल पाएगा कि ग्लेशियर की झीलों में विस्फोट हो पता चल जाए।

जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में ग्लेशियर तेजी के साथ पिघल रहे हैं, जिसे अचानक बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सदी के अंत तक 65 प्रतिशत उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियर पिघल जाएंगे जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होगी इसलिए समय की जरूरत के अनुसार निगरानी और जोखिम प्रबंधन रणनीति तैयार की जाए।

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