शेख हसीना मान नहीं रही थीं, कमरे में थे 6 लोग… 20 मिनट तक एकांत में ले गई बहन !!!

(Pi Bureau)

5 अगस्त की तारीख को शेख हसीना जीवन भर नहीं भूल पाएंगी. बांग्लादेश से शेख हसीना यूं नहीं भागी हैं. आरक्षण को लेकर प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि शेख हसीना की जान पर बन आई थी. प्रदर्शनकारी सड़कों पर थे. प्रधानमंत्री आवास से महज कुछ दूरी पर थे. किसी भी वक्त पीएम आवास की ओर प्रदर्शनकारियों का काफिला कूच कर सकता था. ऐसे में 5 अगस्त की सुबह-सुबह प्रधानमंत्री आवास पर अचानक हलचल बढ़ गई. बांग्लादेश के हालात बिगड़ते जा रहे थे. इससे एक दिन पहले प्रदर्शन में 100 लोगों की मौत हो चुकी थी. शेख हसीना के खिलाफ गुस्सा अब अपने चरम पर था. इस बीच 5 अगस्त को बांग्लादेश के तीनों सेना प्रमुख आनन-फानन में शेख हसीना से मिलने पहुंचे. यहां शेख हसीना की बहन रेहाना भी मौजूद थीं. कमरे में केवल पांच लोग थे. यहीं पर बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का क्लाइमेक्स लिखा गया.

सोमवार की सुबह तो शेख हसीना सरकार ने पुलिस और सेनाओं से साफ कह दिया थ – ‘जो कर सकते हो, कर लो!’ इंटरनेट बंद, सड़कों पर पुलिस और फौज की कड़ी नाकेबंदी, और शहर के बीच तक जाने के सारे रास्ते सब बंद थे. प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी. मगर तब भी भीड़ मानने को तैयार नहीं थी. ऐसा लग रहा था जैसे शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के लिए सिर पर कफन बांध कर निकले हों. हसीना हर कीमत पर प्रदर्शन को रोकना चाहती थीं, मगर सेना गोली चलाने के पक्ष में नहीं थी. आर्मी चीफ का कहना था कि इसके लिए नरसंहार करना होगा.

बंद कमरे में वे 6 लोग
बहरहाल, सोमवार की सुबह सड़कों से लेकर पीएम आवास तक खूब हलचल वाली थी. एक दिन पहले ही बांग्लादेश में कत्लेआम मचा था. शेख हसीना के खिलाफ गुस्सा सातवें आसमान पर था. अचानक सुबह-सुबह आर्मी चीफ, पुलिस चीफ, एयर फोर्स चीफ और नेवी चीफ हसीना के आवास पर पहुंचे. शेख हसीना इन सबसे अपनी बहन शेख रेहाना की मौजूदगी में मिलीं. शेख रेहाना लंदन रहती हैं और कुछ दिन पहले ही बांग्लादेश आई थीं. कमरे में महज 6 लोग ही थे.

शेख हसीना विरोध प्रदर्शनों को कुचलने पर अड़ी हुई थीं. मगर सेना प्रमुखों ने साफ कर दिया कि यह नामुमकिन है. शहर में आने वालों की संख्या लाखों में थी. भारी संख्या में प्रदर्शनकारी पीएम आवास के आसपास के इलाके के करीब पहुंच चुके थे. शेख हसीना की को बचाने के लिए खून-खराबा करना पड़ता, नरसंहार करना पड़ता. तभी सेना प्रमुखों को यकीन नहीं था कि इसके बाद भी वे इतनी बड़ी भीड़ को रोक पाएंगे. इस तरह शेख हसीना के सामने सेना प्रमुखों ने हाथ खड़े कर दिए.

हालांकि, सेना प्रमुखों की बात मानने को शेख हसीना तैयार नहीं थीं. सेना प्रमुखों की चिंता को भी हसीना अनदेखा कर रही थीं. ऐसे में शेख हसीना की बहन ने रेहाना ने उनसे अकेले में बात करने के लिए कहा. रेहाना अपनी बहन शेख हसीना को अकेले में ले गईं. करीब 20 मिनट बाद जब वे एक कमरे से वापस आईं, तो शेख हसीना चुप थीं. मगर तब भी वह अनिच्छुक थीं. इसके बाद आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमान ने वर्जीनिया में रहने वाले शेख हसीना के बेटे सजीव वजेद को फोन किया और अपनी मां को समझाने को कहा.

आर्मी चीफ ने किसका फोन थमाया
इसके बाद आर्मी चीफ ने फोन शेख हसीना को थमा दिया. इस दौरान वो और बाकी सैन्य अधिकारी देखते रहे. हसीना ने अपने बेटे की बात चुपचाप सुनी. फिर उन्होंने सिर हिला दिया. वजेद ने हसीना संग बातचीत के बारे में कहा. ‘वो कहीं नहीं जाना चाहती थीं, देश छोड़ना तो बिलकुल नहीं चाहती थीं. लेकिन हमें सबसे पहले उनकी सुरक्षा की चिंता थी, इसलिए हमने उन्हें जाने के लिए मना लिया.’ उन्होंने बताया कि फोन पर उन्होंने हसीना को कहा कि भीड़ आपकी हत्या कर सकती है. इसलिए देश छोड़ दें. प्रदर्शन की उग्रता को देखते हुए सेना प्रमुखों को अंदाजा हो गया था कि देश छोड़ने के लिए शेख हसीना के पास एक घंटे से भी कम समय है.

आखिरी संबोधन भी नहीं कर सकीं
इसके बाद शेख हसीना के पास इतना भी समय नहीं बचा कि वो देश को आखिरी बार संबोधित कर पातीं. चारों तरफ अफरा-तफरी के माहौल में ऐसा संभव नहीं हो सका. किसी तरह उन्हें सेना की बख्तरबंद गाड़ी में बिठाया गया और सीधे हेलीपैड तक पहुंचाया गया. इसके बाद वह मिलिट्री एयरक्राफ्ट से सीधे दिल्ली के बगल में हिंडन एयरबेस पहुंचीं.

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