(Pi Bureau)
हाल ही में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले यानी कोटा के अंदर कोटा दिए जाने पर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने तीखी टिप्पणी करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी. बहुजन समाज पार्टी मौजूदा वक्त में सियासी तौर से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. बहुजन समाज पार्टी को आरक्षण का मुद्दा नई संजीवनी की तरह मिल गया है. बहुजन समाज पार्टी ने तय किया है कि उपचुनाव और आने वाले बाकी चुनाव में वह आरक्षण को ही सबसे बड़ा मुद्दा बनाएगी. बहुजन समाज पार्टी अपने समाज के लोगों के बीच में यह जाकर कहने की स्थिति में है कि जिसकी जिस राज्य में सरकार होगी वही कोटे को तय करेगा. ऐसे में राज्यों में सरकार बनवाना उनके लिए बेहद जरूरी हो जाता है. इस बात का इशारा उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी किया था. पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने भी मंगलवार हरियाणा में होने वाली रैली में इसी बात का जिक्र किया था.
आरक्षण के मुद्दे को उठाकर बसपा प्रदेश भर में संगठन को मजबूत करने की तैयारी कर रही हैं. ग्राम सभाओं के माध्यम से पार्टी लोगों को आरक्षण के मसले पर जागरूक करेगी. इसके लिए बसपा के जिला से लेकर प्रखंड स्तर तक के अधिकारियों को विशेष दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. पार्टी की कोशिश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के वोटरों के बीच आरक्षण के मुद्दे को प्रभावित तरीके से स्थापित करने की है. दरअसल, 80 के दशक में जब बसपा की नींव रखी गई थी, तब कांशीराम ने ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा देकर वंचित तबके को शासन व्यवस्था में फिट करने की योजना पर काम शुरू किया था. राजनीति के जानकार मानते है कि नई पीढ़ी की बसपा ज़रूर कुछ गुल खिलाएगी.
मायावती को मिला अच्छा मुद्दा
यूपी की राजनीति में विषेश नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ल का भी मानना है कि मायावती इस फैसले को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाली हैं. खासकर आकाश आनंद ने इसकी शुरुआत भी कर दी है. अब देखना दिलचस्प होगा कि आगामी उपचुनाव में बसपा इसे कैसे मुद्दा बनाकर अपने वोट बैंक को सहेजने की कोशिश करती है.
मायावती प्रदेश में आरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में
मायावती प्रदेश में आरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में है. कोटे के अंदर कोटा यानी उप वर्गीकरण के फैसले को लेकर वह सहमत नहीं दिख रही हैं. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भारतीय जनता पार्टी और एनडीए जब चाहेंगे, आरक्षण का कोटा खत्म कर देंगे. बसपा के लोग अब गांव-गांव जाकर एससी-एसटी वर्ग के लोगों को यह समझने की कोशिश करते दिख सकते हैं. दरअसल, यूपी की राजनीति में दलित वोट बैंक हमेशा प्रभावी भूमिका में रहा है. मायावती इस वोट बैंक के दम पर अपनी राजनीति करती रही हैं. समाजवादी पार्टी हालांकि बसपा के इस मुद्दे को चैलेंज नहीं मान रही है. सपा प्रवक्ता उदयवीर सिंह का कहना है कि इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा. अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले को जनता का समर्थन मिल रहा है. हालांकि सियासत में कभी किसी पार्टी को खत्म नहीं माना जा सकता है. बसपा की आरक्षण वाली शुरुआत को नया कदम माना जा सकता है.