(Pi Bureau)
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक मामले पर चल रही सुनवाई में गुरुवार को अहम फैसला दिया। कोर्ट ने मामले को पांच जजों की संवैधानिक पीठ के पास रेफर किया है। पीठ मुस्लिम समुदाय के अंदर होने वाले तीन तलाक, ‘निकाह हलाला’ जैसी प्रथाओं का संवैधानिक आधार पर विश्लेषण करेगी। मामले की सुनवाई कोर्ट में 11 मई से होगी। चार दिनों तक मामले की लगातार सुनवाई होगी। इससे पहले एनजेएसी मामले की सुनवाई भी गर्मी की छुट्टियों में ही हुई थी।
गुरुवार को कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल तलाक के मुद्दे को लेकर दाखिल की गई याचिकाओं पर सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ मई के महीने में करेगी। अदालत तीन तलाक के सभी पहलुओं पर विचार करेगी। अदालत ने जोर देकर कहा कि यह मसला बहुत गंभीर है और इसे टाला नहीं जा सकता। सुनवाई के दौरान तीन तलाक को लेकर केंद्र सरकार ने कोर्ट के सामने कुछ सवाल रखे। केंद्र के अलावा कुछ और पक्षों के भी सवाल आए, जिसपर कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा वो अपना पक्ष लिखित रूप से ३० मार्च तक अटॉर्नी जनरल के पास जमा करा दें।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने कहा इस मामले में सिर्फ कानूनी पहलुओं पर ही सुनवाई होगी। उन्होंने कहा कि अदालत कानून से अलग नहीं जा सकती। उसके पहले अदालत 30 मार्च को तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह प्रथा के संबंध में विचार के लिए मुद्दे तय करेगी। गुरुवार को केंद्र सरकार की ओर से इस मसले पर ये 4 सवाल रखे गए
उधर दूसरी तरफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर अपना जवाब दर्ज कराया। मुस्लिम बोर्ड ने कहा कि उनके खिलाफ तीन तलाक के मुद्दे पर दाखिल की गई याचिका आधारहीन है।
मुस्लिम बोर्ड की तरफ से इस मामले में नया कदम उस वक्त उठाया है जब पहले से ही तीन तलाक के मुद्दे पर कई याचिकाएं सुनवाई के लिए लंबित पड़ी हैं। मुस्लिम लॉ बोर्ड यह कहते हुए इस मामले का पक्ष लेता रहा कि ‘बीवी की हत्या करने से बेहतर है उसे तलाक दे देना’ चाहिए।
वहीँ केंद्र ने सवाल करते हुये कोर्ट से पूंछा है कि “ क्या ट्रिपल तलाक , बहुविवाह , हलाला जैसे अधिकार धार्मिक स्वतंत्रा के नाम पर देने की इजाजत संविधान देता है या नहीं , समानता का अधिकार और गरिमा के साथ जीने के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता में किस को प्राथिमिकता दी जाये, पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं और क्या यह मामले उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सही जिसपर भारत ने भी दस्तखत किये है