(Pi Bureau)
आजकल लोग अपनी हेल्थ पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं. लेकिन इसमें भी कुछ लोग यह भूल कर बैठते हैं कि अगर उनका शरीर फिट है, मतलब मसल्स है, एब्स बने हुए हैं, तो वो अपने आपको हेल्दी मानने लगते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है, वास्तव में हेल्दी कौन है? किसे पूर्ण रूप से स्वस्थ पुरुष या महिला कहा जायेगा? आइये जानते हैं राजधानी लखनऊ के मशहूर होम्योपैथ डॉक्टर संजय कक्कड़ से.
डॉक्टर संजय कक्कड़ के अनुसार दुबले लोग चाहते हैं कि वह मोटे हो जाएँ और मोटे लोग चाहते हैं कि वह फिट हो जाएँ. लेकिन कोई ये नहीं चाहता है कि उसकी मासपेशियाँ विकसित हों और वह मजबूत बने. सब दुबला और मोटा होना चाहते हैं लेकिन कोई मजबूत होना नहीं चाहता है. स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए शरीर की प्रकृति को जानना बहुत ही जरुरी होता है. शरीर का स्वस्थ होना किस चीज में निहित है यह लोग नहीं जानते हैं, लोग यह समझते हैं कि वह बीमार नहीं पड़ रहे हैं तो वह स्वस्थ्य हैं. स्वस्थ्य होने की निशानी यह नहीं है कि हम बीमार नहीं पड़ते हैं, बल्कि स्वस्थ्य होने की निशानी यह है कि बीमार होने के बाद हम ठीक कितनी जल्दी हो जाते हैं, शरीर के स्वस्थ्य होने का पता ऐसे चलता है.
शरीर में दो तरीके के अंग होते हैं, एक वो जिनसे हमारी ज़िन्दगी चलती है और दूसरे वो जिनसे हम अपना काम कर पाते हैं. जिन अंगो से हमारी ज़िन्दगी चलती है, उन्हें Vital Organs कहते हैं और जिनसे हम अपना काम कर पाते हैं उन्हें Important Organs कहते हैं. Important Organs के बगैर ज़िन्दगी चल सकती है लेकिन महत्वपूर्ण वह भी है. लेकिन Vital Organs ऐसे होते हैं, जिनके बगैर हम जिंदा नहीं रह सकते. तो स्वस्थ रहने के लिए जानना यह जरुरी यह है कि हमारे शरीर की बनावट कैसी है और इन अंगों से हम कैसे काम लेते हैं और इन्हें मजबूत और स्वस्थ रखने के लिए कितने सजग रहते हैं.
इन अंगों से हमें कैसे काम लेना है यह भी बहुत ज़रूरी होता है. दो तरह के काम होते हैं-पहले वो जिनको हम ‘शरीर से करते हैं’ और दूसरा वह काम जिसको हम ‘शरीर के लिए करते हैं’. शरीर से काम किये जाने वाले काम तो सभी जानते हैं लेकिन ‘शरीर के लिए’ क्या काम किया जाए यह लोग नहीं जानते हैं. लोग यह समझते हैं कि हम एक्सरसाइज (कसरत) करते हैं, तो हम शरीर के लिए बहुत काम कर लेते हैं. हमारे शरीर के लिए दो काम मुख्य रूप से किये जाते हैं. ‘पहला खाना (भोजन)’ और दूसरा ‘पर्याप्त नींद’ लेना. भोजन हमें ‘ऊर्जा’ देता है, जिससे हम सभी काम कर लेते हैं. नींद मतलब ‘सोना’ और सोना मतलब ‘गोल्ड’, कहने का मतलब ये हैं कि जितना खाना जरुरी है उससे कहीं ज्यादा सोना भी जरुरी है. तभी तो उसे सोना (गोल्ड) कहा गया है. सोना हमारे ब्रेन को ताकत देता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि नींद एक काम भी है. लोग सोते हैं लेकिन सोने को काम मान के नहीं सोते हैं. काम के लिए नींद जरुर त्याग देते हैं, तो समझने वाली बात यह है कि हम कोई काम कर क्यों रहे हैं. हमारी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा उद्देश्य क्या है, पैसा कमाना या शरीर चलाना. शरीर चलेगा तो सब कुछ चलेगा पैसा भी आयेगा. वहीं शरीर सही नहीं चलेगा तो पैसा खत्म ही होता रहेगा. तो एक स्वस्थ शरीर के लिए जरुरी यही है कि पर्याप्त खाना और चैन की नींद सोया जाये. हम अपने ओर्गंस का जितना ख्याल रखेंगे हमारे ओर्गंस उतनी ही बेहतरी से काम भी करेंगे.
होम्योपैथी को लेकर भ्रांतियां-
अक्सर देखा जाता है कि लोग होम्योपैथी के इलाज से दूर भागते हैं, और कहते हैं इससे इलाज में समय बहुत लगता है. डॉक्टर संजय कक्कड़ इसको लेकर बताते है कि हाँ लोगों का यह मानना है, लेकिन साथ में लोग यह भी कहते हैं कि होम्योपैथी बीमारी को जड़ से खत्म कर देती है. होम्योपैथी जनमानस के लिए जितनी फायदेमंद हो सकती है, उतनी ही नेग्लेक्टेड है. होम्योपैथी को लेकर ऐसी धारणा के लिए किसी हद तक डॉक्टर कक्कड़ अपने सिस्टम को ही दोषी मानते हैं. डॉक्टर कक्कड़ के अनुसार होम्योपैथी एक अच्छी साइंस है. होम्योपैथी देर से असर करती है, यह कहना भी बिलकुल गलत है. हर इन्सान जो यह कहता है कि होम्योपैथी देर से असर करती है उसके आस-पास एक चमत्कार का केस जरुर मिल जायेगा, जो होम्योपैथी से जुड़ा हुआ होगा. अगर उनके पास ये चमत्कार है, तो फिर ये देर से असर की बात कौन कर रहा है. होम्योपैथी की साइंस ये कहती है कि this is the fastest acting medicine system. इसकी डेफिनिशन में यह लिखा है कि this is the rapid, gentle, cure. डॉक्टर संजय कक्कड़ के अनुसार rapid और gentle शब्द जहाँ जुड़े हुए हो वहां मुझे नहीं लगता लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि होम्योपैथी देर से असर करती है.