(Pi Bureau)
कर्नाटक। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को लेकर किया गया फैसला बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। इस मामले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पहली बार कोई बयान दिया है। भागवत का कहना है कि एक ही धर्म के लोगों को बांटने की कोशिश की जा रही है, जो लोग इसके पीछे जिम्मेदार हैं वो राक्षसी प्रवृत्ति के तहत बांटों और राज करो की नीति अपना रहे हैं।
कर्नाटक चुनाव में क्यों अहम् है लिंगायत
ये समुदाय राज्य में संख्या बल के हिसाब से मजबूत और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है। राज्य में लिंगायत/ वीरशैव समुदाय की कुल आबादी में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी होने का अनुमान है, इन्हें कांग्रेस शासित कर्नाटक में भाजपा का पारंपरिक वोट माना जाता है।1980 के दशक में लिंगायतों ने राज्य के नेता रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा किया था। बाद में लिंगायत कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल के भी साथ गए।
राजनीतिक नेता बदलते आ रहे है नेता
1989 में कांग्रेस की सरकार में पाटिल सीएम चुने गए, लेकिन राजीव गांधी ने पाटिल को एयरपोर्ट पर ही सीएम पद से हटा दिया था।इसके बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस से दूरी बना ली। इसके बाद लिंगायत फिर से हेगड़े का समर्थन करने लगे। इसके बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना। जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो इस समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया था।