(Pi Bureau)
लखनऊ: 2017 में मिली करारी हार से भी कांग्रेस कोई सबक लेने नहीं जा रही है और लगातार कांग्रेस नेतृत्व पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं की बात सुनने को तैयार नहीं दिख रहा है।आज़ादी के बाद मिली अब तक की सबसे बड़ी हार के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व अपने नट बोल्ट कसने को तैयार नहीं, इस के विपरीत नेतृत्व लगातार जमीनी नेताओ और कार्यकर्ताओ को नोटिस भेज रहा है. बताते चले कि पार्टी नेता और कार्यकर्ता नेतृत्व पर स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से संवादहीनता को अहम बता रहे हैं। पार्टी मंच से नेताओं-कार्यकर्ताओं का यह रोष अब सोशल मीडिया पर भी नजर आने लगा है। बावजूद इसके पार्टी नेतृत्व नेताओं-कार्यकर्ताओं की बात सुनने के अनुशासनहीनता का नोटिस थमा रहा है।
90 के दशक में प्रदेश में मंडल-कमंडल की राजनीति के बाद पार्टी का परम्परागत वोट बैंक अन्य दलों में शिफ्ट हो गया। वोट बैंक में सेंध लगने के परिणामस्वरूप पार्टी की विधानसभा में उपस्थिति लगातार कमजोर होती चली गई, जिससे पार्टी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में हताशा गहराने लगी। पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं में गहरी हो रही हताशा को दूर करने के मकसद से पार्टी नेतृत्व ने पहली बार बाहरी आदमी को पार्टी का रणनीतिकार बनाते हुए प्रशांत किशोर को जिम्मा सौंपा। प्रशांत किशोर ने पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं को प्रदेश में पूर्ण बहुमत की कांग्रेस सरकार बनाने का ख्वाब दिखाया और चुनाव आते-आते गठबंधन का सुर अलापने लगे। गठबंधन को लेकर पहले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने विरोध जताया, लेकिन नेतृत्व का रुख देखते हुए चुप्पी साध ली।
चुनाव में पार्टी की बुरी हार के बाद अब वरिष्ठ नेता ही नहीं स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी खुल कर गठबंधन और पार्टी की रणनीति के विरोध में उतर आये। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बाद क्षेत्रीय और स्थानीय नेता भी गठबंधन, पार्टी की रणनीति, कार्यकर्ताओं के सम्मान की बात करते हुए बगावती रुख अपना रहे हैं। पार्टी मंच से निकल कर नेता अब सोशल मीडिया पर भी बगावती तेवर अपनाए हुए हैं। कार्यकर्ताओ का कहना है कि लगातार नेतृत्व और स्थानीय नेताओ और कार्यकर्ताओ के बीच एक संवादहीनता की स्थिति बनी रही वहीं पार्टी नेतृत्व अब भी कार्यकर्ताओं की बात सुनने के बजाए नेताओं को नोटिस थमा कर कार्यकर्ताओं को खामोश करने में जुटा है। पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं की बात सुनने के बजाए उन्हें मिल रहा नोटिस पार्टी कार्यकर्ताओं में दबे असंतोष को हवा दे रहा है। नेताओं का मानना है कि अगर नेतृत्व कार्यकर्ताओं की इसी तरह उपेक्षा करेगा, तो स्थिति इससे भी बदतर हो सकती है।