(Pi Bureau)
नई दिल्ली। प्रचंड बहुमत के साथ 2014 में केंद्र की सत्ता में पहुंची भाजपा की लोकसभा में सदस्यों की संख्या 282 से घट कर 273 रह गई है। बीते चार वर्षों में हुए उपचुनावों में भाजपा को 9 सीटें गंवानी पड़ी।
इसमें सबसे अहम यूपी की कैराना सीट रही, जिसे वीरवार को विपक्ष की एकजुटता ने भाजपा से छीन लिया। लोकसभा में 543 निर्वाचित सदस्य हैं किंतु इसकी चार सीटों पर कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
कर्नाटक के तीन सदस्य त्यागपत्र दे चुके हैं और कश्मीर की अनंतनाग सीट खाली पड़ी है। अनंतनाग सीट के लिए पिछले साल मई में होने जा रहे उपचुनाव को अनिश्चित काल के लिए टाल दिया गया था। इसके कारण लोकसभा में बहुमत के लिए संख्याबल घटकर 270 रह गया है।
व्यावहारिक रूप से देखें तो दोनों मनोनीत सदस्यों को मिलाकर भाजपा के पास अभी 275 सदस्यों का संख्या बल है। इस लिहाज से 315 सदस्यों वाले एनडीए में भाजपा का बहुमत बरकरार है। मोदी लहर में भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनाव में 282 सीटें जीती थीं। मोदी लहर का ही असर रहा कि उसके बाद हुए ज्यादातर राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा जीत दर्ज करती रही।
हालांकि इसके तुरंत बाद हुए दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त खानी पड़ी। पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी के आगे मोदी मैजिक फेल रहा। लेकिन वाम दलों और कांग्रेस को पछाडऩे में वह सफल रही। वर्ष 2017 आते-आते मोदी का जादू लोगों के दिलो दिमाग से उतरना शुरू हो गया था, जिसके चलते पंजाब में गठबंधन अकाली दल के हाथ से सत्ता चली गई। बावजूद इसके भाजपा पूर्वोत्तर राज्यों में अपना परचम लहराने में सफल रही।
गोवा में भी भाजपा सरकार में वापसी करने में सफल रही। लेकिन, एक के बाद एक गढ़ जीतने के चक्कर में भाजपा अपने पुराने किलों में विपक्ष की सेंधमारी रोकने में असफल दिखी।
बीते चार साल में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत विभिन्न राज्यों में हुए लोकसभा के उपचुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के लिए सबसे ज्यादा परेशान करने वाली मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए उपचुनावों की हार रही। इन तीनों राज्यों में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव है।
मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में तकरीबन डेढ़ दशक से भाजपा सत्ता में है और राजस्थान में बीते 5 साल से भाजपा का राज है। यहां के उपचुनावों और निकाय चुनावों के परिणाम बताते हैं कि भाजपा के खिलाफ विकराल सत्ता विरोधी लहर है। सरकार से अपनी नाराजगी अपने वोट के जरिए निकाल रहे हैं।
कैराना इसका ताजा उदाहरण बना, जो आने वाले चुनावों का ट्रेंड सेटर बनने वाला है। यहां भाजपा के खिलाफ रालोद के टिकट पर पूरे विपक्ष ने साझा उम्मीदवार उतारा था। कैराना 2014 के लोकसभा चुनाव का भी ट्रेंड सेटर रहा था। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के कुछ ही महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में कैराना से हिंदुओं के पलायन के मुद्दे ने वोटों के ध्रुवीकरण का काम किया था, जिसके चलते यूपी की 80 में 72 सीटें भाजपा की झोली में चली गई थीं। खास बात यह रही कि इस चुनाव में पूरे यूपी से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीता था। जबकि सपा, बसपा और कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल सीटों पर बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे।