Shashwat Tewari
लखनऊ । नवरात्रों के बाद चैत्र माह की समाप्ती होते ही फसलों और उमंगों का त्यौहार बैसाखी आ गया है । भारतीय संस्कृति के अनुरुप बैसाखी भी ग्रह- नक्षत्रों, वातावरण, ऐतिहासिक महत्त्व और कृषि से जुडा हुआ है ।
गेंहू सरसों की फसलों ने घरती को पीले रंग में रंग रखा है और गरमी भी अंगडाई लेते हुए अपने पूरे जौबन पर आ गई है । बैसाखी का त्यौहार जहॉ फसलों को घरती माता की गोद से ले जा कर गोदामों में रखने को कहता है वहीं गर्मी का गर्मजोशी से स्वागत करने की बात भी करता है । लहलहाती फसलें और ढ़ोल भांगडें मन ही नहीं बल्की तन को भी झुमा देने का माद्दा रखते है । बैसाखी का त्यौहार फसलों, मौसम, खालसा पंथ की स्थापना, जलियॉवाला बाग़ काण्ड के साथ सूर्य का मेष राशि में प्रवेश का भी सूचक है । कई बार ये त्यौहार 14 अप्रैल को भी मनाया जाता है ।
वैशाखी मुख्य रूप से पंजाब में सिक्ख समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। देश विदेश में वैशाखी के अवसर पर, विशेषकर पंजाब में मेले लगते हैं। लोग सुबह-सुबह सरोवरों और नदियों में स्नान कर मंदिरों और गुरुद्वारों में जाते हैं। लंगर लगाये जाते हैं और चारों तरफ लोग प्रसन्न दिखलायी देते हैं। विशेषकर किसान, गेहूँ की फ़सल को देखकर उनका मन नाचने लगता है। तिलहन की फसल किसान के लिए सोना होती है और उसकी मेहनत का रंग दिखायी देने लगता है। वैशाखी पर गेहूँ की कटाई शुरू हो जाती है। वैशाखी पर्व ‘बंगाल में पैला (पीला) बैसाख’ नाम से, दक्षिण में ‘बिशु’ नाम से और ‘केरल, तमिलनाडु, असम में बिहू’ के नाम से मनाया जाता है। सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस दिन मेले लगते हैं। लोग श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं । बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा युवा पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं। इस प्रकार वैशाख मास के प्रथम दिन को बैसाखी कहा गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया। बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है अतः इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं।
सन् 1699 में बैसाखी के दिन आन्नदपुर साहिब में सिक्खों के दसवें गुरू गोविंद सिंह महाराज ने पॉच प्यारों की बलि लेकर खालसा पंथ की स्थापना की थी और सभी वर्गों के लोगों को पंच प्यारा बना कर खालसा को पंच कारक धारण करने का आदेश दिया था ।
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व कर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों के हत्याकांड से केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक राज की बर्बरता का ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि इसने भारत के इतिहास की धारा को ही बदल दिया था ।
बैसाखी के दिन लोग ढ़ोल नगाड़े की धुनों पर नाचते झूमते और गाते फसलों की कटाई करते है और शाम को लज्जीज पंजाबी पकवानों का भरपूर स्वाद चखते है । इस पर्व पर मक्की दी रोटी और सरसों के साग के साथ लस्सी पीने की तो बात ही निराली है । छोले भटूरे, दाल मखानी के साथ तंदूरी रोटी ! क्या कहने !
बैसाखी पर गुरूद्वारों में विशेष दरबार सजाया जाता है और लोग गुरू महाराज का आशीर्वाद लेकर कड़ा प्रसादा (हलवा) का भोग ग्रहण करते है । कई घरों में बैसाखी का खास आयोजन किया जाता है जहॉ लोग सामुहिक रूप से उत्साहित हो कर नाचते गाते हुए आन्नद मनाते है ।
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