केंद्र सरकार ने फाइनेंशियल रेजोल्युशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (FRDI)बिल-2017 को छोड़ने का फैसला किया है. बिल को लेकर संदेह था कि यदि यह पास हो जाता तो बैंक में जमा धन पर जमाकर्ता का हक खत्म हो सकता था. सूत्रों ने बताया कि सरकार ने बैंक यूनियनों और पीएसयू बीमा कंपनियों के विरोध के बाद इस बिल को वापस लेने का फैसला किया है. इस बिल से बैंकों को अधिकार मिल जाता कि वह अपनी वित्तीय स्थिति बिगड़ने पर जमाकर्ता का जमा धन लौटाने से इनकार कर दें और इसके बदले बॉन्ड, सिक्योरिटी या शेयर दे दें.
क्या है एफआरडीआई बिल?
सरकार ने यह बिल बैंकों के दिवालिया होने की स्थिति से निपटने के लिए तैयार किया था. इसके तहत जब बैंक की कारोबार करने की क्षमता खत्म हो जाती और वह अपने पास जमा आम लोगों का धन लौटा नहीं पाता, तो बिल बैंक को इस संकट से उबारता. इस बिल में ‘बेल इन’ का प्रस्ताव दिया गया था. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बिल को रद करने के लिए कैबिनेट में जल्द प्रस्ताव आएगा. अगर प्रस्ताव लागू होता तो बैंक में जमा धन पर जमाकर्ता से ज्यादा बैंक का अधिकार होता. बेन इन के तहत बैंक चाहे तो खराब वित्तीय स्थिति का हवाला देकर जमा पैसे लौटाने से इनकार भी कर सकते थे.
क्या है बेल-इन?
बेल-इन का अर्थ है अपने नुकसान की भरपाई कर्जदारों और जमाकर्ताओं के धन से की जाए. इस बिल में यह प्रस्ताव आने से बैंकों को भी यह अधिकार मिल जाता.
मौजूदा समय में जो नियम-कानून हैं, उसके मुताबिक अगर कोई बैंक या वित्तीय संस्थान दिवालिया होता है तो जनता को एक लाख रुपए तक का बीमा कवर मिलता है.
1960 से ही इसके लिए रिजर्व बैंक के अधीन ‘डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन’ काम कर रहा है. एफआरडीआई बिल आने से सारे अधिकार वित्त पुनर्संचरना निगम को मिल जाएंगे. बैंक या वित्तीय संस्थान के दिवालिए होने की सूरत में निगम ही ये फैसला करेगा कि जमाकर्ता को मुआवजा दिया जाए या नहीं और अगर दिया जाए तो कितना?