अगर आप अनाधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के जरिए लेनदेन करते हैं और आपके अकाउंट पर साइबर अटैक होता है या आपके ऑनलाइन खाते की हैकिंग हो जाती है एवं पैसे कट जाते हैं तो ऐसी सूरत में कौन जिम्मेदार होगा? इस तरह के मामलों से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले साल कुछ नॉर्म्स तय किए थे जिसमें जवाबदेही की समय सीमा तय हो सके, साथ ही डिजिटल लेनदेन में धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं के बीच नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
आरबीआई की ओर से जारी 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में अनाधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन में ग्राहकों की जवाबदेही को सीमित करने के बारे में समझाया गया है।
शून्य जवाबदेही: यदि बैंक की ओर से कोई गलती होती है तो इसके लिए ग्राहक जिम्मेदार नहीं होगा। इसके अलावा, कुछ केस में अगर न तो बैंक की गलती से और न ही ग्राहक की कमी की वजह से फ्रॉड हुआ है लेकिन बैंकिंग सिस्टम के चलते फ्रॉड सामने आया है तो ग्राहक को अनाधिकृत लेनदेन के बारे में तीन वर्किंग डेज में बैंक को बताना होगा।
बोर्ड द्वारा तय नीति के अनुसार जवाबदेही: यदि ग्राहक की ओर से अनधिकृत लेनदेन की सूचना सात दिनों के भीतर दी जाती है, तो ग्राहक की जवाबदेही बैंक की बोर्ड द्वारा तय नीति के अनुसार निर्धारित की जाएगी। यदि कोई फ्रॉड हुआ है और ग्राहक की ओर से बैंक को अनधिकृत लेनदेन की सूचना दी जाती है तो 10 वर्किंग डेज के भीतर बैंक को उस फ्रॉड में हुए नुकसान की रकम ग्राहक के खाते में भेजना होगा। साथ ही शिकायत मिलने के 90 दिनों के भीतर बैंक को इसका हल करना होगा। इसके अलावा, ग्राहक को एसएमएस अलर्ट और इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन के लिए अपने मोबाइल नंबर को रजिस्टर कराना होगा।