3 तलाक सबसे घटिया तरीका शादी तोड़ने का,जाने दुसरे दिन की कार्यवाही !!!(Pi Special)

(Pi Bureau)

 

यह कुरान के सिद्धांतों, संविधान के प्रावधानों के खिलाफ : जेठमलानी

यह ऐसा मसला नहीं है जिसकी न्यायिक जांच की जरूरत हो, महिलाओं को निकाहनामा में ही इस बारे में शर्त लिखवाकर तीन तलाक को ना कहने का अधिकार है। – सलमान खुर्शीद

खुर्शीद उन इस्लामिक ओैर गैर इस्लामिक देशों की सूची तैयार करें जिनमें तीन तलाक पर प्रतिबंध है।-सुप्रीम

कोर्ट पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मोरक्को और सउदी अरब जैसे देश तीन तलाक की अनुमति नहीं देते। – खुर्शीद

कोर्ट ने ये भी पूछा : ‘‘अगर कुछ गलत है तो क्या उसे शरियत कहा जा सकता है?’ जस्टिस आरएफ नरीमन :

‘‘इस्लाम में निकाह और तलाक से जुड़े मामले में थ्योरी  और प्रैक्टिकल को अलग तरह से देखने की जरूरत है।’चीफ जस्टिस खेहर :

‘‘ट्रिपल तलाक में आपसी सहमति नहीं होती।’एक पिटीशनर ने कहा : जब शादी के मामले में नियम-कानून का पालन किया जाता है तो तलाक के केस में ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? दारुल कजा को बैन करना चाहिए। वह पैरलल ज्यूडिशियरी की तरह काम कर रहा है।

 

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मुस्लिम समाज में विवाह विच्छेद के लिए तीन तलाक देने की प्रथा सबसे खराब है और यह वांछनीय नहीं है। हालांकि ऐसी सोच वाले संगठन भी हैं, जो इसे वैध बताते हैं। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह ऐसा मसला नहीं है जिसकी न्यायिक जांच की जरूरत हो और वैसे भी महिलाओं को निकाहनामा में ही इस बारे में शर्त लिखवाकर तीन तलाक को नहीं कहने का अधिकार है।

तीन तलाक का अधिकार सिर्फ शौहर को ही उपलब्ध है, बीवी को नहीं और यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) का हनन है। तीन तलाक लैंगिक आधार पर भेदभाव करता है और यह तरीका पवित्र कुरान के सिद्धांतों के भी खिलाफ है और इसके पक्ष में कितनी भी वकालत इस पापी और असंगत परपंरा को, जो संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है, बचा नहीं सकती है। कोई भी कानून एक पत्नी को पति की मर्जी पर पूर्व पत्नी बनने की इजाजत नहीं दे सकता और यह घोर असंवैधानिक आचरण है।

पवित्र कुरान में तलाक की प्रक्रिया साफ-साफ लिखी हुई है। एक साथ तीन तलाक बोलना इस्लाम के किसी भी स्कूल में मान्य नहीं है। यह प्रि इस्लामिक प्रैक्टिस है। यह औरत को जमीन में दफनाने जैसा है। ट्रिपल तलाक इस्लाम का मूल तत्व नहीं है। कोई कानून जो अमानवीय हो, इस्लामिक नहीं हो सकता। आरिफ मोहम्मद खान, मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड इस्लाम में सारी समस्याओं की जड़ मौलवी और काजी हैं। यह कुरान को तोड़-मरोड़कर अपने फायदे के हिसाब समझाते हैं। ये समानांतर कोर्ट चलाते हैं। मुस्लिम लॉ को संहिताबद्ध करने की जरूरत है। फरहा फैज, याचिकाकर्तासोमवार व मंगलवार को 3 तलाक समर्थक अपना पक्ष रखेंगे।

 

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