बंदरो के उत्पात से पुराना लखनऊ त्रस्त , बन्दर बोले हमारे जंगल हमें लौटा दो !!!

(Pi Bureau)

-वीर विनोद छाबड़ा

 

पिछले कई महीनों से मुल्क के कई शहर वानर उत्पात की ज़़बरदस्त चपेट में है। जनता बेहाल-परेशान है। परंतु तमाम मोहल्ला सुधार समितियां और प्रशासन खामोश हैं। बजरंगबली की वानर सेना के विरूद्ध डायरेट एक्शन लेने से भय लगता है, उनसे ज्यादा उनके मानव भक्तों से। ऐसी विषम स्थिति में बंदे का पशु-पक्षी के प्रति प्रेम जाग्रत हुआ। अनेक वानर समूहों से बात की और उनकी चाहतों की गहन स्टडी की। और एक रिपोर्ट तैयार की। इसके चुनींदा अंश वानर समाज की जुबानी मानव जाति के सम्मुख विचारार्थ प्रस्तुत किये।

हम वानर शरारती हैं, हमारी धमा-चौकड़ी से आपका खासा नुक्सान होता है। ये हमारा पैदाइशी गुण है। आखिर आपके पूर्वज जो ठहरे। हमारे बच्चों को आपके बच्चों की तरह छतें और दीवारें चढ़ने-फलांगने में मज़ा आता है। फ़र्क ये है कि आप अपने बच्चों को डांटते-डराते हो। ये क्या बंदरों की तरह उछल-कूद रहे हो? चोट लग जाएगी। लेकिन हम सयाने और बुजु़र्ग वानर शांत और गंभीर मुद्रा में अपने बच्चों को खेलता देख आनंदित होते है। अपना बचपन याद करते हैं। हम साथियों की जूएं चट कर ज़रूरी प्रोटीन और विटामिन हासिल करते है। गहन चिंतन भी करते है कि क्या कभी ऐसा समय आएगा जब हम राजा होंगे और आप प्रजा। आप ही लोगों के मुंह से सुना है कि दूसरे कई ग्रहों पर हम राजा है। हालीवुड में इस पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं। कल रात भी किसी चैनल पर ‘प्लेनेट आॅफ दि ऐप्स’चल रही थी।

शुक्र है हमारी ज़िंदगी में सकून है। न कमाने की चिंता है और मंहगाई का रोना। न आरक्षण। न हिंदू-मुसलमान। ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम…। इंडिया गेट और  जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करके वक़्त की बर्बादी भी नहीं। सरकार किसी की भी हो, हमें कोई परेशानी नहीं। चिंता है तो बस यही कि मानव जाति सलामत रहो। मंदिरों पर भरपूर चढ़ावा बदस्तूर आता रहे ताकि हमारे खाने-पीने में कभी कोई कमी नहीं आए।

आपकी तरह हमारी जिंदगी का भी ढेर सारा हिस्सा आपस में लड़ने-झगड़ने में गुज़रता है। हम पलट कर हमला तभी करते है, जब आप हमें छेड़ते या मारते हैं। न मांगूं सोना-चांदी न मांगूं हीरा-मोती। बस पेट भरने के लिए हम दूसरों की पकी-पकाई मेहनत पर हाथ साफ करते है। लेकिन आप तो हमसे कई कदम आगे हो। चोरी-डकैती और हत्या के साथ-साथ ‘पासवर्ड’हैक करके एटीएम और बैंकों से भी खून-पसीने की गाढ़ी कमाई पल भर में ले उड़ते हो।

आपका अनुकरण करने में भी हम अव्वल है। हम फ्रिज खोल सकते है। पंखा-बत्ती आफ-आन कर सकते हैं। रूठी पत्नी को भी मना लेते हैं। आखिर आप मदारी और हम नकलची जो ठहरे। हमें आप नकलची बंदर कह कर नाहक बदनाम करते है। जबकि आप खुद हमसे बड़े नकलची हो। पड़ोसी की नकल करके ईएमआई पर कार क्रय करते हो।

 

याद करें त्रेता युग में लंका विजय। यदि वानर सेना न होती और हनुमान जी के साथ सुग्रीव, अंगद, नल-नील आदि वीर योद्धा न होते तो निसंदेह रामकथा का रूप कुछ दूसरा ही होता। आपकी बीमारी का उपचार करने से पूर्व दवाईयों का प्रयोग पहले हम पर किया जाता है। अतः आपको हमारा ऋणी होना चाहिए।

आपने हमारे यहां से दफ़ा होने की कीमत पूछी है। तो सुन लें श्रीमान। जिस जगह पर आपकी कालोनी बसी है, ऊंची-ऊंची विशाल अट्टालिकाएं खड़ी हैं, शापिंग माल-सिनेप्लैक्स बने हैं, यहां पर कभी हरे-भरे व ऊंचे-ऊंचे फलदार पेड़ों वाले घने जंगल थे। इन्हीं पर हमारी कुटियां थीं। ज़मीन पर तो हम कभी-कभार ही उतरते थे। परंतु आपने विलासिता के फेर में हमारे जंगल काट डाले। हम बेघर हो गए। अब आप चाहते हो हम यहां निकल जायें। हम चले जाएंगे। मगर एक शर्त है कि पहले आप हमारे जंगल हमें लौटा दो।

मानव जाति ने इस रिपोर्ट को बिना विचार किये कोल्ड स्टोरेज में डाल दिया।

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