सुप्रीम कोर्ट में आज दिल्ली में अफसरों पर नियंत्रण और भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के अधिकार क्षेत्र जैसे मसलों पर अपना फैसला सुनाया, जिससे केजरीवाल सरकार को बड़ा झटका लगा है। गत वर्ष एक नवंबर को न्यायमूर्ति एके सिकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दोनों जजों ने इस मसले पर अलग फैसला पढ़ा है और दोनों जजोंं के बीच में फैसले को लेकर मतभेद हैं। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच को यह केस सौंप दिया है।
कोर्ट में दोनों जजों के फैसले की बड़ी बातें
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ की इस सवाल पर अलग-अलग राय है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं पर नियंत्रण किसके पास है।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर अपना खंडित फैसला वृहद पीठ के पास भेजा ।
दो सदस्यीय पीठ भ्रष्टाचार रोधी शाखा, राजस्व, जांच आयोग और लोक अभियोजक की नियुक्ति के मुद्दे पर सहमत हुई।
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की इस अधिसूचना को बरकरार रखा कि दिल्ली सरकार का एसीबी भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकता ।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केंद्र के पास जांच आयोग नियुक्त करने का अधिकार होगा ।
सचिव स्तर के अधिकारियों पर फैसला एलजी करें- जस्टिस सीकरी
दानिक्स स्तर के अधिकारियों पर फैसला एलजी की सहमति से हो- जस्टिस सीकरी
अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई राष्ट्रपति करें- जस्टिस सीकरी
एसीबी केंद्र के अधिकारियों पर एक्शन नहीं ले सकता- जस्टिस सीकरी
निदेशक स्तर की नियुक्ति सीएम कर सकते हैं- जस्टिस सीकरी
लैंड का सर्कल रेट दिल्ली सरकार तय कर सकती है- जस्टिस सीकरी
सर्विसेज(अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग) पर मैं सहमत नहीं- जस्टिस भूषण
केजरीवाल सरकार कानून नहीं बना सकती
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली बनाम एलजी केस को तीन जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच को भेज दिया है। यानी इस मसले पर अब भी कोई फैसला नहीं आया है और अधिकारों की जंग अब भी बरकरार है। इस फैसले के बाद ये संशय बना हुआ है कि दिल्ली का बॉस कौन है।
मालूम हो कि गत वर्ष चार जुलाई को संविधान पीठ द्वारा दिल्ली बनाम उपराज्यपाल विवाद में सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की थी। संविधान पीठ ने कहा था कि कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन को छोड़कर उपराज्यपाल स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते।
उस फैसले में कहा गया था कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करना होगा और अगर किसी मसले पर सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद हो जाए तो उपराज्यपाल उसे राष्ट्रपति को रेफर करेंगे। इस फैसले केबाद दिल्ली सकरार ने कहा था कि संविधान पीठ केफैसले केबाद भी कई मसलों पर गतिरोध कायम है।