चुनाव आयोग में ईवीएम हैकिंग चैलेज शुरू , माकपा और एनसीपी पहुंची !!!

(Pi Bureau)

 

नई दिल्ली : बीते चुनावो में भाजपा की बड़ी जीत के बाद तमाम राजनैतिक दलों ईवीएम मशीन में गड़बड़ी के आरोप लगाये थे । आम आदमी पार्टी सहित बसपा ने खुल कर ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाया था । जिसके चलते पूरे देश में आज चुनाव आयोग कार्यालय में बहुचर्चित ईवीएम चैलेंज शुरू हो चुका है।

नई दिल्ली स्थित चुनाव आयोग के दफ्तर में शुरू हुए ईवीएम चैलेंज में दो पार्टियां एनसीपी और सीपीएम हिस्सा ले रही हैं। सबसे पहले विरोध करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती और बसपा इस चैलेंज से गायब है । पुरे देश में ईवीएम के खिलाफ आवाज़ उठने पर चुनाव आयोग ने राजनैतिक दलों को ईवीएम मशीन हैक करने का न्योता भेजा था और चुनौती दी थी कि वह चुनाव आयोग की मशीन हैक करके दिखाए । बताते चले इससे पूर्व दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने एक ईवीएम मशीन जैसे मशीन को दिल्ली विधानसभा में छेड़छाड़ करते हुये का लाइव प्रदर्शन किया था ।

इस बीच शुक्रवार को इस मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों, व्यक्तियों, मीडिया और यहां तक कि फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया नेटवर्क को हाल ही में आयोजित विधानसभा चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल की आलोचना करने पर रोक लगा दी है।

 

दो सदस्य वाली पीठ जिसमे जस्टिस शरद कुमार शर्मा और राजीव शर्मा शामिल थे , ने कहा, ‘सभी बड़ी और क्षेत्रीय पार्टियां, एनजीओ, व्यक्ति हाल ही में हुए चुनावों के संदर्भ में ईवीएम के बारे आलोचना नहीं कर सकते हैं।’

बताते चले उत्तराखंड हाईकोर्ट में कांग्रेस ले उपाध्यक्ष ने एक पीआईएल दायर की थी जिसमे मांग की गयी थी कि मौजूदा चुनाव आयोग के ईवीएम चैलेंज को अमान्य किया जाये ।

 

 

इस पीआईएल पर अपने आदेश में दो सदस्य वाली ने बेंच ने कहा, ‘चुनाव आयोग ने सफलतापूर्वक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का आयोजन कराया है। हम राजनीतिक पार्टियों को एक संवैधानिक संस्था की छवि बिगाड़ने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। चुनाव प्रक्रिया में लोगों का भरोसा बनाए रखना बेहद जरूरी है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना संविधान की अहम खासियत है।’

 

जजों ने महसूस किया कि चुनाव आयोग की तुलना अन्य किसी अथॉरिटी से नहीं की जा सकती है। यह कोर्ट की जिम्मेदारी है कि संवैधानिक निकायों की स्वतंत्रता बनाए रखी जाए और गैर जरूरी आलोचना से उसे बचाया जाए। इस तरह की प्रक्रियाओं से लोकतंत्र का आधार कमजोर होगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेवजह किसी भी संवैधानिक संस्था की आलोचना की इजाजत नहीं देता।

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