अमिताभ श्रीवास्तव
Former Executive Editor at TV TODAY NETWORK LTD
रामानन्द सागर उन्हें अपने सीरियल रामायण में रावण का रोल देना चाहते थे। दरअसल जब रामानन्द सागर दूरदर्शन के लिए सीरियल बना रहे थे तो उन्हें रावण जैसे पौराणिक खलनायक के किरदार के लिए एक बहुत दमदार अभिनेता की तलाश थी। उनकी निगाह अमरीश पुरी पर जाकर रुकी जो बापू की फ़िल्म हम पाँच में दुर्योधन जैसे विलेन के किरदार में अपनी छाप छोड़ चुके थे। उस फ़िल्म में काम करने वाले हर एक्टर को उसकी सफलता से फ़ायदा हुआ लेकिन सबसे ज़्यादा माँग बढ़ी फ़िल्म के हीरो मिथुन चक्रवर्ती और विलेन अमरीश पुरी की।
लेकिन अमरीश पुरी ने रामानन्द सागर को मना कर दिया- दो वजहों से-एक तो उन दिनों बड़े पर्दे पर उनके स्टारडम की नयी नयी शुरुआत हुई थी और टीवी पर धारावाहिकों का दौर भी नया-नया था। अमरीश पुरी छोटे परदे की सीमाओं में क़ैद होने से हिचकिचा रहे थे। दूसरी वजह थी पैसा। फ़िल्मों में उन्हें खलनायकी का अच्छा ख़ासा पैसा मिल रहा था जिसके मुक़ाबले में रामानन्द सागर का प्रस्ताव फीका लग रहा था। तो बात बनी नहीं और रावण की भूमिका अंततः गुजराती फ़िल्मों के अभिनेता अरविंद त्रिवेदी के हिस्से में आई जिसकी शोहरत के बूते पर वह बाद में बीजेपी के लोकसभा सांसद भी बने।
ये बात और है कि अमरीश पुरी ने बाद में अपने अज़ीज़ निर्देशकों श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी के लिए दूरदर्शन पर भी काम किया। भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर उसी नाम से बने गोविंद निहलानी के धारावाहिक में बुज़ुर्ग सिख ग्रंथी के किरदार में अमरीश पुरी को भुलाया नहीं जा सकता। बँटवारे के दंगों में मारे गये बेटे को खो देने की पीड़ा और इस सांप्रदायिक हिंसा से अपनी बहू और पोती को बचाने की कोशिश और कशमकश को उन्होने बहुत शानदार ढंग से अभिव्यक्त किया था। ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ याद है न ! उसमें तमस की टीम भी दिखती है-अमरीश पुरी भी।
ये भी बहुत दिलचस्प बात है कि मसाला सिनेमा में खलनायकी के ज़रिये शोहरत और पैसा कमाने वाले अमरीश पुरी का दिल पूरी तरह रंगमंच को समर्पित था। मध्यवर्गीय पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले अमरीश पुरी पिता की इच्छा के विरुद्ध एक्टिंग से जुड़े और चालीस की उम्र पार करने के बाद फ़िल्मों में आए थे। उनसे पहले उनके दो बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी फ़िल्मों से जुड़ चुके थे। मदन पुरी तो ख़ुद भी काफ़ी कामयाब खलनायक और चरित्र अभिनेता थे। कुंदन लाल सहगल उनके चचेरे भाई थे । लेकिन अमरीश पुरी को इस पहचान के बावजूद एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। शुरू में वह हीरो बनना चाहते थे लेकिन निर्देशकों ने नकार दिया। एक क्लर्क की नौकरी करते हुए उन्होंने थियेटर का सफ़र शुरू किया और बहुत अच्छे अभिनेता के तौर पर प्रशंसा पाई। अपने अनुशासन के लिए अमरीश पुरी आरएसएस से अपने शुरुआती जुड़ाव को श्रेय देते थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने संघ से रिश्ता तोड़ लिया था।
बेहद लोकप्रिय नकारात्मक किरदारों की बदौलत अमरीश पुरी हिंदी सिनेमा के अमर खलनायकों की क़तार में बहुत आगे खड़े नज़र आते हैं । गब्बर ने अमजद खान को अमर किया तो मोगैंबो ने पुरी को। इंडियाना जोंस के विेलेन मोलाराम के किरदार के बाद स्टीवन स्पिलबर्ग तक ने उनका लोहा माना था।
लेकिन अच्छे, दमदार और चालू बंबइया सिनेमा में हर तरह के खलनायकों की अनगिनत भूमिकाएँ करने से बहुत पहले अमरीश पुरी आर्थर मिलर, माॅलियर, सार्त्र के अलावा धर्मवीर भारती के अंधा युग, मोहन राकेश के आधे-अधूरे और विजय तेंदुलकर के सखाराम बाइंडर जैसे नाटकों के ज़रिये रंगमंच के सितारे बन चुके थे। थियेटर की दीवानगी उनमें सिनेमा की अपार सफलता के बावजूद कुछ ऐसी थी कि परदेस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान भी उन्होंने अमेरिका में आधे अधूरे के मंचन का मौक़ा निकाल लिया। अपने थियेटर गुरुओं इब्राहिम अल्काज़ी और सत्यदेव दुबे और समानांतर सिनेमा के निर्देशकों श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी को वे बेहद आत्मीयता और सम्मान के साथ याद करते थे। एक ही समय में अमरीश पुरी ठेठ मसाला सिनेमा में खलनायकी कर रहे थे और समानांतर सिनेमा में निशांत़, मंथन, भूमिका, आक्रोश, अर्धसत्य, आघात, पार्टी जैसी फ़िल्में कर रहे थे। यह अभिनेता के तौर पर अपनी कला से उनकी प्रतिबद्धता, समर्पण, प्रेम की गहराई का सबूत था।
थियेटर के चलते ही अमरीश पुरी की मुलाक़ात पृथ्वीराज कपूर से हुई। पृथ्वीराज कपूर के अंतिम दिनों से जुड़े एक बहुत मार्मिक प्रसंग का ज़िक्र अमरीश पुरी ने अपनी आत्मकथा में किया है। पृथ्वीराज कपूर जब गले के कैंसर की वजह से टाटा मेमोरियल अस्पताल में भर्ती थे तो अमरीश पुरी अक्सर उनसे मिलने जाते थे। एक दिन पृथ्वीराज कपूर को बीड़ी की तलब लगी। उन्होंने अपने तकिये के नीचे से बीड़ी निकाली और अमरीश पुरी से कहा दरवाज़ा बंद कर दें ताकि कोई देख न सके। अपनी आत्मकथा में पुरी कहते हैं, ” उन्हें गले का कैंसर था और उन्हें सिगरेट बिल्कुल भी नहीं पीनी थी। मैं उनके इस कृत्य में भागीदार था। परंतु उनकी आवश्यकता और लालसा को देख मैं उन्हें रोकने का साहस नहीं कर पाया। पापा जी ने यह बात किसी को न बताने के लिए सख़्ती से मना किया । कुछ दिन के बाद उनका देहांत हो गया। ”
क्या आप यक़ीन कर सकते हैं कि पर्दे पर खलनायकी का ख़ौफ़ क़ायम करने वाले अमरीश पुरी असली जीवन में छिपकली से बहुत डरते थे।