(Pi Bureau)
पल्लवी त्रिवेदी
(Additional SP at Police Department MP)
लड़के की आंखें इस कदर बेचैन थीं जैसे होंठों की कोई बात आंखों में अटक गई हो। कुछ कहना था , कहना ही था। कहने ही तो आया था और शब्द थे कि कण्ठ की दीवारों पर फिसलते रह जाते । होंठों तक की दूरी तय करना सारी दुनिया का चक्कर काट लेने के बराबर कठिन हुआ जाता। होंठ एक लरज के साथ बार बार कांपकर रह जाते।
लेकिन वो बेखबर कहाँ जानता था कि उसका प्रेम में डूबा चेहरा एक हरी स्वच्छ पारदर्शी झील की तरह था कि तलहटी में बिछे सबसे छोटे पत्थर भी दिखाई पड़ते थे । उसी प्रेम की जगमग रोशनी में लड़की उस झील के तल तक झांक चुकी थी। सबकुछ तो दिखाई पड़ रहा था। धुला, निखरा,अपने सबसे सच्चे रूप में। शब्द शायद उस भव्य दृश्य के साथ न्याय भी न कर पाते। अच्छा हुआ ,कुछ न कह सका। आखिर एक बार आंखें बंद कर झटके से खोलीं, भारी कदमों से उठा और विवश निगाहों से लड़की को देखते हुए चल दिया।
कितना नादान था , सोचता था बिन कहे लौट गया। नहीं पता उसे कि वो सब भी कह गया जो किसी और दिन के लिए सहेज रखा था।
लड़का प्यासा चला गया कि उसके कह डालने की प्यास बुझ न पायी। लडक़ी भी प्यासी दरवाज़े पर खड़ी रह गयी कि सब समझकर भी सुनने की प्यास बनी रही।
शायद कल लड़का लड़की को सब कह डाले । इज़हार कर देने की प्यास बुझ जाए लेकिन उसी क्षण मन मे एक नई प्यास जन्म ले लेगी। शायद थोड़ी देर और मुलाकात की प्यास, बस पांच मिनिट और बात की प्यास, विदा के वक्त पलटकर यकायक गले लग जाने की प्यास ,माथे पर एक नर्म चुम्बन की प्यास ,एक साथ हाथों में हाथ डाले नंगे पैर ठंडी रेत में चलने की प्यास, बांसुरी की तरह बजते मौन में इक दूजे को सुनने की प्यास… और न जाने कितनी तरह की अनजानी और अनदेखी प्यास। हर घूँट के बाद और बढ़ती जाती प्यास।
प्रेम में प्यास बनी रहे तो प्रेम भी सुलगता रहता है।किसी प्रेमी के लिए इससे बेहतर दुआ क्या होगी कि वह ताउम्र प्यासा रहे। हर घूँट के बाद एक और घूँट की प्यास सदा बची रहे। मानसून की पहली बारिश टूटकर बरसे और लड़का लड़की तरबतर भीगते हुए भी प्यास से अकुलातेे रह जाएं।
———–पल्लवी
#लवनोट्स