सरकार देश की गिरती अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने पर काम कर रही है। ताकि विकास में तेजी लाई जा सके। इस बीच तेल एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दोस्त साबित हो सकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी घोषणाएं की हैं। वहीं दूसरी ओर कच्चा तेल में भी तेज गिरावट दर्ज की गई है।
चीन की अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाने की घोषणा के बाद अमेरिकी कच्चा तेल तीन फीसदी से अधिक गिरावट के साथ 53.58 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। ग्लोबल बेंचमार्क ब्रेंट भारत के लिए अधिक प्रासंगिक है। वह दो फीसदी या 1.19 डॉलर सस्ता होकर 58.75 डॉलर प्रति बैरल हो गया है।
तेल की कीमतें एकदम सही समय पर कम हुई हैं। ये विकास को तेज गति देने वाले कदमों को और मजबूती देगा। सस्ते तेल का फायदा ये होता है कि इससे आयात बिल और सब्सिडी पर खर्च में कमी आती है। यही कारण है कि चालू खाते और महंगाई नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
वहीं सस्ता तेल मांग को भी बढ़ाता है, जिससे किसानों की लागत खर्च कम होता है। जो सिंचाई के लिए डीजल पंप जैसे सेट का इस्तेमाल करते हैं। सब्सिडी पर खर्च में कमी आएगी तो सामाजिक कल्याण की योजनाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च के लिए फंड बचता है। जिससे आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी आती है।
पहले भी मिल चुका है फायदा
बढ़ सकता है कर
अब एक बार फिर पहले जैसा ही हो रहा है। कच्चे तेल में कमी आने से सरकार को बजट में प्रति लीटर 2 रुपये कर बढ़ाने का मौका मिल गया। जिससे इस वित्त वर्ष में सरकार के खाते में अतिरिक्त 20 हजार करोड़ रुपये आएंगे। हालांकि तेल की कीमतों में 2017 के बाद से तेजी आ रही थी।
ब्रेंट क्रूड मई 2018 में 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। यही कारण था कि सरकार को दो बार कर में कमी करनी पड़ी थी। जिसके बाद से कीमत लगातार कम हो रही है। हालांकि मई में इसकी कीमत 70 डॉलर के पार थी और फिर 60 डॉलर पर आ गई थी।