पिपराइच के किसानो के चेहरे खिले , बोले योगी धन्यवाद , जानिये क्यों ???

(Pi Bureau)

 

गोरखपुर : जिले में बंद पड़ी तीन मिलों की वजह से दम तोड़ चुके चीनी उद्योग व गन्ने की खेती को पिपराइच में नई मिल की स्थापना से पुनर्जीवन मिलेगा। युवाओं को रोजगार मिलेगा तो गन्ना किसानों में खुशहाली आएगी। कभी चीनी का कटोरा कहे जाने वाले इलाके में पिपराइच मिल के खुलने की उम्मीद से ही आसपास के किसानों के चेहरे खिल गए थे। नकदी फसल गन्ने की खेती की तैयारी शुरू कर दी थी। अब बजट जारी होने के बाद उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है।

 

गोरखपुर से 18-20 किलोमीटर दूर स्थित पिपराइच टाउन एरिया में चीनी मिल वर्ष 2008 में  मायावती की बसपा सरकार के प्रकोप का शिकार हो गया था।बसपा की सरकार ने घाटा दिखा करके मिल पर ताला लगवा दिया था तब से यह मिल बंद होकर एक खंडहर में तब्दील हो गया।इस मिल को गन्ना सप्लाई करने वाले कुशीनगर , महाराज गंज और गोरखपुर के गन्ना किसान गन्ना की फसल करना छोड़ दिए ।प्रदेश में सत्तारूढ़ होते ही बीजेपी की योगी सरकार ने इस चीनी मिल को चालू करने का ऐलान किया और उसके लिए नई जमीन आवंटित कर बाउंड्री वाल और बोर्ड लगाए जाने पर स्थानीय लोगों में बेहद खुशी का माहौल देखा जा रहा है लोगों का मानना है कि 2008 के बाद हम बेरोजगार हो गए । अब योगी सरकार में हमें उम्मीद जगी है कि हम अपने परिवार के लिए 2 जून की रोटी का इंतजाम करने का साहस कर सकते हैं । स्थानीय लोगों मे यहाँ अधिकारियों का जमावड़ा लगने के कारण खुशी देखी जा रही है वह किसान खुशहाल, लोग खुशहाल ,युवा खुशहाल, हर तरफ खुशहाली की बात करते हुए योगी की तारीफ ही तारीफ कर रहे हैं।

गौरतलब है कि 2008 से बंद चल रही मिल की जगह खोली जाने वाली नई मिल की क्षमता 3 हजार 500 टन आफ केन पर डे है। इसे क्षमता को पांच हजार टीसीडी तक विस्तारित किया जा सकता है।

बात करें पूर्व के वर्षों की तो कभी शुगर बाउल(sugar Bowl) कहे जाने वाले इस क्षेत्र की एक के बाद एक मिलों के बंद होने से बीते बीस साल में यहां गन्ने का क्षेत्रफल घटकर एक-चौथाई से भी कम रह गया है। छोटे किसानों ने तो खेती से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है। गन्ना बकाए का भुगतान न होने के साथ चीनी मिलों की एक-एक कर बंदी इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है।कभी गन्ने की खेती के रकबे को हैसियत से आंके जाने वाले इस इलाके में शुरुआती वर्षो  1995-96 में गोरखपुर जिले में गन्ने की क्षेत्रफल 19 हजार हेक्टेयर था। मुसीबत तब शुरू हुई जब साल 2000 में धुरियापार चीनी मिल को शासन ने बंद कर दिया। साल 2004 में इसे चलाया था पर 2008 में बंद कर दिया गया। इसके एक साल बाद साल 2008 में पिपराइच चीनी मिल भी बंद हो गई।फिर तो यहां के किसान टूटते चले गए। रही सही कसर सरदारनगर चीनी मिल ने पूरी कर दी। बकाए का भुगतान नहीं होने से किसानों से गन्ना की खेती से करीब-करीब तौबा कर दिया। साथ ही 2012 में यह मिल भी बंद हो गई।मिलों की बंदी का नतीजा हुआ कि साल 1995-96 में जिले में गन्ने का जो क्षेत्रफल 19 हजार हेक्टेयर था वह साल 2010-11 में घटकर 4006 हेक्टेयर तक पहुंच गया। साल 2011-12 में क्षेत्रफल 4754 हेक्टेयर तक पहुंचा पर इसके बाद फिर से 2012-13 में कम होकर 4200 हेक्टयर पर आ गया। साल 2015-16 में यह दो हजार हेक्टेयर से नीचे आ गया।

 

अब हाल यह है कि वहीं किसान गन्ने की खेती कर रहे हैं जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं और उसने पास संसाधन मौजूद हैं। यह किसान अपना गन्ना आसपास के चीनी मिलों जैसी कप्तानगंज, ढाड़ा, सुकरौली आदि में जाकर बेचते हैं। लेकिन उनकी भी परेशानी कम नहीं है। इनको भी किसी तरह गन्ना मूल्य का भुगतान तो हो जाता है पर गन्ने को मिल तक पहुंचाने में जो खर्च नहीं मिलता। कुल मिलाकर अब उनके लिए भी यह खास फायदे का सौदा नहीं रह गया है।

 

 

इस सम्बंध में गन्ना किसान प्रशिक्षण संस्थान गोरखपुर के सहायक निदेशक ओम प्रकाश गुप्ता का कहना है मिल की क्षमता अधिक होने का सीधा असर गन्ने के क्षेत्रफल पर पड़ेगा। यदि गन्ना मूल्य भुगतान समय से होता रहेगा तो गन्ने की क्षेत्रफल करीब-करीब उतना ही पहुंच जाएगी जितना बीस साल पहले हुआ करता था।

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