(Pi Bureau)
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित और स्टैनफोर्ड बायोफिजिसिस्ट माइकेल लेविट का कहना है कि कोरोना वायरस का दुनिया में सबसे बुरा दौर शायद पहले ही खत्म हो चुका है. उनका कहना है कि कोरोना वायरस से जितना बुरा होना था, वह हो चुका है और अब धीरे-धीरे हालात सुधरेंगे.
माइकेल ने कहा, असली स्थिति उतनी भयावह नहीं है जितनी आशंका जताई जा रही है. हर तरफ डर और चिंता के माहौल में लेविट का ये बयान काफी सुकून देने वाला है. उनका बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि उन्होंने चीन में कोरोना वायरस से उबरने को लेकर उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुई है. तमाम हेल्थ एक्सपर्ट्स दावा कर रहे थे चीन को कोरोना वायरस पर काबू पाने में लंबा वक्त लग जाएगा लेकिन लेविट ने इस बारे में बिल्कुल सही आकलन लगाया.
लेविट ने फरवरी महीने में लिखा था, हर दिन कोरोना के नए मामलों में गिरावट देखने को मिल रही है. इससे यह साबित होता है कि अगले सप्ताह में कोरोना वायरस से होने वाली मौत की दर घटने लगेगी. उनकी भविष्यवाणी के मुताबिक, हर दिन मौतों की संख्या में कमी आने लगी. दुनिया के अनुमान से उलट चीन जल्द ही अपने पैरों पर फिर से उठकर खड़ा हो गया. दो महीने के लॉकडाउन के बाद कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुबेई प्रांत भी खुलने वाला है.
वास्तव में, लेविट ने चीन में कोरोना से 3250 मौतों और 80,000 मामलों का अनुमान लगाया था जबकि बाकी एक्सपर्ट्स लाखों में गणना कर रहे थे. मंगलवार तक चीन में 3277 मौतें और 81171 मामले सामने आए हैं.
अब लेविट पूरी दुनिया में भी चीन वाला ट्रेंड ही देख रहे हैं. 78 देशों में जहां हर दिन 50 नए केस आ रहे हैं, के डेटा के विश्लेषण के आधार पर वह कहते हैं कि अधिकतर जगहों में रिकवरी के संकेत नजर आ रहे हैं. उनकी गणना हर देश में कोरोना वायरस के कुल मामलों पर नहीं बल्कि हर दिन आ रहे नए मामलों पर आधारित है. लेविट कहते हैं कि चीन और दक्षिण कोरिया में नए मामलों की संख्या लगातार गिर रही है.
वह कहते हैं, आंकड़ा अभी भी परेशान करने वाला है लेकिन इसमें वृद्धि दर के धीमी होने के साफ संकेत हैं. वैज्ञानिक लेविट इस बात को भी मानते हैं कि आंकड़े अलग हो सकते हैं और कई देशों में आधिकारिक आंकड़ा इसलिए बहुत कम है क्योंकि टेस्टिंग कम हो रही है. हालांकि, उनका मानना है कि अधूरे आंकड़े के बावजूद लगातार गिरावट का यही मतलब है कि कुछ है जो काम कर रहा है और ये सिर्फ नंबर गेम नहीं है.
उनका ये निष्कर्ष दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए उम्मीद लेकर आया है. लेविट तमाम देशों में कोरोना वायरस को जड़ से खत्म करने की अहमियत पर भी जोर देते हैं. लेविट के मुताबिक, सोशल डिस्टेंसिंग सबसे जरूरी है, खासकर इसका ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है कि बड़ी संख्या में लोग एक जगह इकठ्ठा ना हों, क्योंकि ये वायरस इतना नया है कि ज्यादातर आबादी के पास इससे लड़ने की इम्युनिटी ही नहीं है और वैक्सीन बनने में अभी भी महीनों का वक्त लगेगा. वह चेतावनी देते हैं कि ये वक्त दोस्तों के साथ पार्टी के लिए बाहर जाने का नहीं है.
वह कहते हैं, लक्ष्य के करीब पहुंचने के लिए शुरुआत में ही पहचान करना बहुत जरूरी है, ना केवल टेस्टिंग से बल्कि बॉडी टेंपरेचर सर्विलांस से भी जो चीन अपने यहां लागू कर रहा है और शुरुआत में ही सोशल आइसोलेशन कर रहा है.
लेविट के मुताबिक, इटली की वैक्सीन विरोधी मानसिकता ही शायद एक मजबूत वजह थी कि वहां वायरस इतनी तेजी से फैल गया. फ्लू के खिलाफ वैक्सीन लेना जरूरी है क्योंकि फ्लू की महामारी के बीच कोरोना वायरस बुरी तरह से हमला कर सकता है और हॉस्पिटलों में मरीजों की संख्या बढ़ सकती है. ये भी आशंका बनी रहती है कि कोरोना वायरस के तमाम मामले सामने ना आ पाए.
लेविट की ये बातें दिल को तसल्ली देने वाली हैं. उन्होंने कहा कि पैनिक कंट्रोल करना सबसे अहम है. हम बिल्कुल ठीक होने जा रहे हैं. 2013 में रसायन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले लेविट तमाम वैज्ञानिकों और मेडिकल एक्सपर्ट्स की उस भविष्यवाणी को खारिज कर रहे हैं कि जिसमें कहा गया है कि दुनिया का अंत होने वाला है. उनका कहना है कि तमाम डेटा इस बात का समर्थन नहीं करते हैं.. लेविट को कोरोना वायरस से धीमी हुई आर्थिक प्रगति को लेकर सबसे ज्यादा चिंता है. दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई हैं और उत्पादन सुस्त पड़ गया है. असंगठित क्षेत्र के लोग लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.