कर्जधारकों के लिए बड़ी खबर, छूट मिलने के बाद भी जल्द से जल्द चुका ले अपनी ईएमआई, वरना लग सकता हैं बड़ा झटका !!!

(Pi Bureau)

आरबीआई ने लॉकडाउन और कोरोना महामारी से प्रभावित कर्जधारकों को राहत देने के लिए ईएमआई चुकाने में 6 महीने की रियायत दी है। एक नजर में तो यह घोषणा काफी सहूलियत वाली दिखती है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस अवधि में कर्ज पर ब्याज चलता रहेगा जिससे आने वाले समय में कर्जधारकों को दोहरा झटका लग सकता है। यही कारण है कि रियायत के पहले दौर में एसबीआई के महज 20 फीसदी ग्राहकों ने ही विकल्प चुना था।

कर्ज लेने की क्षमता पर हो सकता है असर
बैंकिंग मामलों के जानकारों का कहना है कि वैसे तो ईएमआई नहीं चुकाने का विकल्प चुनने वाले ग्राहकों का कर्ज एनपीए के दायरे में नहीं आता और न ही उनके सिबिल पर कोई असर पड़ेगा। बावजूद इसके अगले एक साल तक उनकी कर्ज लेने की क्षमता पर इसका असर पड़ना तय है। 

बैंक कर्ज देने में सतर्कता बरतेंगे
बैंक ऐसे ग्राहकों को कर्ज देने में काफी सतर्कता बरतेंगे और उन्हें ईएमआई आधारित नया कर्ज देने या उनके कर्ज की लिमिट बढ़ाने से हिचकिचाएंगे। कई बैंक अधिकारियों का कहना है कि रियायत अवधि बीतने के बाद ऐसे ग्राहकों के कुल ईएमआई चुकाने की क्षमता पर संशय है। साथ ही बिजनेस लोन लेने वाले ग्राहकों के कारोबार की स्थिरता पर अगले कुछ वर्षों पर अनिश्चितता बनी रहेगी।

बैंक की ओर से ईएमआई रियायत का लाभ उठाने वाले ग्राहकों को भुगतान के लिए तीन विकल्प दिए जा सकते हैं।
1- रियायत खत्म होने पर इन छह महीने का कुुल जितना ब्याज होगा, उसका एकमुश्त भुगतान करना पड़ेगा।
2- कुल ब्याज को बकाया लोन में जोड़ दिया जाएगा और इसी के हिसाब से लोन चुकाने की शेष अवधि में ईएमआई की बढ़ी राशि का भुगतान करना होगा।
3- कुल ब्याज को लोन की बकाया रकम में जोड़ दिया जाएगा और ईएमआई की राशि तो पहले जितनी ही होगी, लेकिन लोन चुकाने की अवधि बढ़ा दी जाएगी।

ब्याज पर भी देना पड़ सकता है ब्याज
राहतों की घोषणा के दौरान आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट कहा है कि ईएमआई भुगतान में मिली छूट की अवधि का ब्याज ग्राहक को चुकाना होगा। बैंक इस ब्याज को अलग टर्म लोन के रूप में बदल सकते हैं, जिससे पहले से चल रहे लोन की ईएमआई में कोई बदलाव न हो।

अगर बैंक इस सुझाव का पालन करते हैं, तो ग्राहक को टर्म लोन नियमों के तहत बकाया ब्याज पर भी ब्याज चुकाना पड़ सकता है। इसका मतलब है कि अगर किसी की 20 हजार की ईएमआई में 13 हजार रुपये का ब्याज शामिल है और वह छह महीने रियायत का विकल्प चुनता है। तो, उसे 78 हजार रुपये के कुल ब्याज पर अलग से ब्याज चुकाना पड़ सकता है।

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