(Pi Bureau)
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हाल के दिनों में तिब्बत को लेकर चिताएं बढ़ गई है। दरअसल, उनकी सरकार की तरफ से लगातार तिब्बतियों को अपने पाले में करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है, लेकिन इसमें उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हुई है।
इस कारण चीन को एक तरफ अलगाववाद की चिंता सता रही है तो दूसरी तरफ भारत के साथ लगती सीमा पर मुंह की खाने के बाद सुरक्षा को लेकर नींद भी उड़ी हुई है। दरअसल, तिब्बत को लेकर पांच साल बाद एक बैठक का आयोजन किया गया था, लेकिन इसमें चीन के राष्ट्रपति का चेहरा और जबान दोनों ही उनकी चिंता को व्यक्त करने में जुटे थे।
पूर्वी लद्दाख में भारत के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद ‘तिबब्त पॉलिसी बॉडी’ की उच्च स्तरीय बैठक की गई। इसमें जिनपिंग ने भारत के साथ लगी सीमा पर सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दिया और कहा कि देश की सर्वोच्च प्राथमिकता सीमाओं की सुरक्षा होनी चाहिए।
चीन के अनुसार, शी ने पार्टी, सरकार और सैन्य नेतृत्व को सीमा सुरक्षा को मजबूत करने का आदेश दिया। साथ ही कहा कि भारत से लगती सीमाओं पर सुरक्षा, शांति और स्थिरता सुनिश्चित की जाए।
चीनी राष्ट्रपति तिब्बत पर आयोजित 7वें केंद्रीय सेमिनार में लोगों को संबोधित तक रहे थे। यह तिब्बत की चीन नीति पर देश का सबसे महत्वपूर्ण मंच है, जिसपर साल 2015 के बाद पहली बार चर्चा हुई है। शी ने लोगों को जागरूक करने का आदेश देते हुए कहा कि क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए अलगाववाद के खिलाफ अभेद्य किले का निर्माण करें।
जिनपिंग ने तिब्बती बौद्ध धर्म का ‘सिनीकरण’ करने का आह्वान भी किया। दरअसल, सिनीकरण का अर्थ है गैर चीनी समुदायों को चीनी संस्कृति के अधीन लाना और इसके बाद समाजवाद की अवधारणा के साथ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक व्यवस्था उस पर लागू करना।
भारत-चीन के बीच सीमा का अधिकांश हिस्सा तिब्बत से जुड़ा हुआ है। चीन ने इस पर 1950 में कब्जा कर लिया था। इसके बाद बड़ी संख्या में तिब्बत के रहने वाले लोगों ने भारत में शरण ली। अधिकतर तिब्बतियों ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला को अपना घर बनाया हुआ है।