(Pi Bureau)
अमेरिका शुरू से ही आतंकी गतिविधियों के खिलाफ रहा है। पहले अमेरिका आतंक से प्रभावित देशों के खिलाफ सहानुभूति रखता था मगर जब उसके देश पर 9 सिंतबर 2001 को आतंकी हमला हुआ उसके बाद अमेरिका आतंक के खिलाफ खुलकर खड़ा हो गया। आतंक को पनाह देने वाले दुश्मनों की लिस्ट बनाई और वहां उनके खात्मे के लिए काम शुरू किए।
अमेरिका पर हुए आतंकी हमले में तालिबान का नाम आया था, उसी के बाद से अमेरिका तालिबान का दुश्मन बना हुआ है। बीते दो दशक से अमेरिकी सैनिक तालिबान में डेरा डाले हुए हैं और आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। अमेरिका तालिबान में अब तक का सबसे लंबा युद्ध भी लड़ चुका है मगर आतंक को पूरी तरह से नेस्तनाबूत नहीं कर पाया है।
अमेरिका पर 9/11 को हुए हमले के बाद अमेरिका ने करीब दो दशक पहले अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान पर हमला किया था, यह अब तक का सबसे लंबा युद्ध साबित हो चुका है मगर आतंक पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। इस दौरान एक बात ये जरूर सामने आई कि अफगानिस्तान के कट्टर समूह पहले से कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में है।
अलकायदा को पनाह देने वाले के खिलाफ कार्रवाई
7 अक्टूबर 2001 को अमेरिका ने अफगानिस्तान में अल कायदा को पनाह देने वाले तालिबान के खिलाफ हमला बोला था। ये हमले अमेरिका में हुए आतंकी हमले के कुछ सप्ताह किए गए थे, इस हमले में लगभग 3,000 लोगों की जान चली गई थी। इस्लामिक शासन के ढहने के 19 साल बाद तालिबान एक बार फिर सत्ता में लौटने की कोशिश कर रहा है। इसी साल उसने वाशिंगटन के साथ सेना वापसी पर ऐतिहासिक समझौता किया।
तालिबान को लेकर अफगानियों में भ्रम
इन सबके बीच अफगानिस्तान में लोगों के मन में तालिबान को लेकर भय है। एक दौर ऐसा भी था जब वह अपने शासन के दौरान व्यभिचार के आरोप में महिलाओं को मौत के घाट उतार देता था, अल्पसंख्यक धर्म के सदस्यों को मारता था और उसके आतंकी लड़कियों को स्कूल जाने से रोक देते थे। कई अफगान तालिबान के नए युग को लेकर चिंतित हैं।
अफगानिस्तान के रहने वाले तालिबान के शरिया कानून से काफी घबराते भी हैं। दरअसल कुछ साल पहले तक काबुल की सड़कों पर मामूली अपराध के लिए तालिबान शरिया कानून के तहत हाथ और उंगलियां काट दिया करता था। 2001 के हमले ने युवा अफगानों के लिए कुछ स्थायी सुधारों की शुरुआत की, खासतौर पर लड़कियों के लिए और उन्हें शिक्षा का अधिकार भी मिला, दोहा में पिछले महीने शुरू हुई शांति वार्ता में तालिबान ने महिला अधिकारों और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मुद्दों पर चर्चा नहीं की।
अमेरिका को महंगा पड़ा युद्ध करना
अफगानिस्तान में अमेरिका को हमला करना काफी महंगा पड़ा है। अमेरिका को इस युद्ध में अब तक 1 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने पड़े हैं और उसके 2,400 सैनिकों की युद्ध के दौरान मौत हो गई। इस बारे में पेंटागन की ओर से भी बयान जारी किया गया जिसमें इस युद्ध को निर्णायक स्थिति पर ना पहुंचने वाला युद्ध बताया जा चुका है। उधर दोहा में तालिबान के नेता और अफगानिस्तान सरकार लगातार बातचीत के जरिए एक सामान एजेंडा तैयार करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।