(Pi Bureau)
कोर्ट ने बताया ‘रेयररेस्ट ऑफ रेयर केस’
19 दिसम्बर 2008 को हुए चर्चित एनकाउंटर केस के मुख्य आरोपी आरिज़ खान को अदालत ने मौत सज़ा की सज़ा सुनाई और इसके साथ ही तुष्टिकरण की राजनीति पर फिर सवाल खड़ा हुआ है। सर्वविदित है कि कांग्रेस ने इस एनकाउंटर पर तुस्टीकरण का कार्ड खेलते हुए उसके शीर्ष नेतृत्व सोनिया गाँधी से लेकर सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह से लेकर कई अन्य काँग्रेसी नेताओं के बयान पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। यहाँ तक कि TMC की मुखिया ममता बनर्जी ने भी इस एनकाउंटर को फ़र्ज़ी करार देते हुए मुसलमानों की सहानुभूति लेने की कोशिश की थी। ममता बनर्जी ने तो ये तक कह दिया था कि अगर ये एनकाउंटर फर्ज़ी निकला तो वो राजनीति से सन्यास ले लेंगी।
सवाल यह भी उठता है कि::-
इस एनकाउंटर में शहीद हुए पुलिस अधिकारी मोहन चंद्र शर्मा और संजीव कुमार यादव की शहादत का जो अपमान इन नेताओं ने किया था, क्या वो दंड के अधिकारी नहीं है?
क्या गलत बयानी का कोई दंड नहीं होना चाहिए विशेषकर तब जब की संवेदनशील मुद्दे पर वोटों की राजनीति करने के लिए देश के ऐसे बड़े नेता सामने आए जिनकी देश की जनता का एक बड़ा वर्ग उनकी बातों पर आँखे बंद कर विश्वास करता है…
बड़ा सवाल यह भी है कि बाटला हाउस के दोषी आतंकवादियों के साथ साथ उस इनकाउंटर का विरोध करने वाले तथा आतंकवादियों को बेगुनाह कहने वाले,आतंकियों की मौत पर घड़ियाली आँसू बहाने वाले.. क्या गुनाहगार नहीं थे ?