इस्राइल-फलस्तीन के बीच फिर से खूनी संघर्ष:: जब बात देश की शान की थी, इजरायल के इस कदम ने पूरी दुनिया में….!!!

(Pi Bureau)

इस्राइल और फलस्तीन के बीच जारी संघर्ष लगातार बड़े युद्ध में तब्दील होता जा रहा है। इजराइली लड़ाकू विमानों ने सोमवार को गाजा सिटी में कई जगहों पर भीषण बमबारी की। यह बमबारी करीब 10 मिनट तक हुई जिससे शहर का उत्तर से दक्षिण तक का सारा इलाका थर्रा उठा। एक बड़े इलाके पर बड़ी संख्‍या में बम गिराए गए।

इस हमले में दक्षिणी गाजा सिटी के बड़े हिस्सों को बिजली पहुंचाने वाले एकमात्र संयंत्र की एक लाइन क्षतिग्रस्त हो गई है। इस लड़ाई में अब तक 188 लोगों की मौत हो गई है। मालूम हो कि‍ 10 मई को तनाव शुरू होने के बाद से 188 फलस्तीनी मारे गए हैं जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं। इन हमलों में 1,230 अन्य घायल भी हुए हैं।

तो आइये जानते हैं इजरायल कहानी ऐसी कहानी के बारे में जो आज तक अपने नहीं सुनी होगी, इजरायल के इस कदम ने पूरी दुनिया में उसकी ताकत का लोहा मनवाया था

यूं तो मोसाद के कारनामों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. जांबाजी की भी अनगिनत कहानियां हैं. लेकिन आपको आज मोसाद की एक ऐसी कहानी के बारे में बता रहे हैं जिसके बाद से पूरी दुनिया ने इजरायल की इस खुफिया एजेंसी का लोहा माना. ये कहानी आज इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये फिलिस्तीन से जुड़ी है और मौजूदा समय में फिलिस्तीन और इजरायल के बीच जंग जारी है.

जब इजरायल के खिलाड़ी बनाए गए बंधक
तारीख थी 5 सितंबर 1972. जर्मनी के म्यूनिख शहर में ओलंपिक खेलों का आयोजन हो रहा था. खिलाड़ियों की तरह ट्रैक सूट पहने 8 अजनबी लोहे की दीवार फांदकर ओलंपिक विलेज में घुस गए थे और इजरायली खिलाड़ियों को अगवा कर लिया था. ये पीएलओ यानी फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन से जुड़े थे.

अगले दिन ये खबर सनसनी बनकर पूरी दुनिया में फैल गई कि फलस्तीनी आतंकवादियों ने जर्मनी के म्यूनिख शहर में 11 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया है. आतंकियों ने मांग रखी कि इजरायल की जेलों में बंद 234 फलस्तीनियों को रिहा किया जाए, लेकिन इजरायल ने आदतन दो टूक शब्दों में कह दिया कि आतंकियों की कोई मांग नहीं मानी जाएगी.

फिर शुरु हुआ बदले का मिशन
बात देश की शान की थी, लिहाजा बदले के लिए प्लान तैयार किया गया. इजरायल ने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद से उन सभी लोगों के कत्ल की योजना बनाई. इस मिशन को नाम दिया गया ‘रैथ ऑफ गॉड’ यानी ईश्वर का कहर.

म्यूनिख नरसंहार के दो दिन के बाद इजरायली सेना ने सीरिया और लेबनान में मौजूद फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के 10 ठिकानों पर बमबारी की और करीब 200 आतंकियों और आम नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर इतने भर से रुकने वाली नहीं थीं.

उन्होंने इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ गुप्त मीटिंग की और उनसे एक ऐसा मिशन चलाने को कहा जिसके तहत दुनिया के अलग-अलग देशों में फैले उन सभी लोगों को जान से मार दिया जाए, जिनका इस आतंकी हमले से कनेक्शन था.

20 साल चली खोज और…
सबसे पहले मोसाद ने ऐसे लोगों की लिस्ट बनाई, जिनका संबंध म्यूनिख हमले से था. मोसाद के एजेंट्स दुनिया के अलग-अलग देशों में जाकर करीब 20 साल तक हत्याओं को अंजाम देते रहे. मोसाद के एजेंट्स ने फोन बम, नकली पासपोर्ट, जहर की सुई, इन सब का इस्तेमाल करते हुए चुन-चुनकर उन लोगों को मारा, जो इजरायली खिलाड़‍ियों की हत्‍या के लिए जिम्‍मेदार थे.

अपराधियों के परिवार को भेजते थे बुके
बताया जाता है कि मोसाद का यह ऑपरेशन करीब 20 वर्षों तक चला था और हर टारगेट को वे 11 गोलियां उन 11 खिलाड़‍ियों की तरफ से मारते थे, जिनकी 1972 में हत्‍या कर दी गई थी. इतना ही नहीं, अपने टारगेट को खत्‍म करने के बाद मोसाद की तरफ से उनके परिवारवालों को बुके के साथ एक संदेश भी भेजा जाता था, जिसमें लिखा होता था, ‘यह याद दिलाने के लिए हम न भूलते हैं, न माफ करते हैं.’

महिलाएं भी करती हैं जासूसी
इजरायल की इस खुफिया एजेंसी में पुरुष ही नहीं महिलाएं भी होती हैं, जो अपनी खूबसूरती के झांसे में लेकर अपना काम निकाल लेती हैं.

ऐसी ही एक महिला जासूस की कहानी 1980 के दशक में सामने आई थी, जिसने ‘सिंडी’ के फर्जी नाम से उस शख्‍स की गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई थी,

दिसंबर 1949 में हुई थी स्‍थापना
मोसाद का मकसद महज किसी वारदात के लिए जिम्‍मेदार शख्‍स की जान लेकर उसे सजा देना नहीं होता, बल्कि मोसाद इसके जरिये एक तरह का खौफ पैदा करती है और यह संदेश देने का प्रयास करती है कि कोई भी उससे पंगा न ले. इसकी स्थापना 13 दिसंबर, 1949 को हुई थी. जिसका मुख्‍यालय इजरायल के तेल अवीव शहर में है.

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