(Pi Bureau)
अफगानिस्तान के बड़े शहरों और प्रांतीय राजधानियों को धीरे-धीरे अपने कंट्रोल में कर रहे तालिबान पर पाकिस्तान के बाद चीन भी मेहरबान होने को तैयार है। हाल के दिनों में अफगानिस्तान में शांति कायम करने के उपायों में शामिल और तालिबानी प्रतिनिधि से मुलाकात करने वाले चीन ने अपना असली रंग दिखा दिया है। चीन अब अफगानिस्तान में तालिबान राज को मान्यता देने पर विचार कर रहा है। अगर आतंकी संगठन तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा करने में सफल होते हैं तो चीन उन्हें मान्यता दे सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह भारत और अमेरिका समेत उन देशों के लिए बड़ा झटका होगा, जो तालिबान पर दबाव बनाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं और अफगानिस्तान में शांति बहाल करने के प्रयासों में जुटे हैं।
जानकारी के मुताबिक, अगर आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई अफगान सरकार पर हावी हो जाता है और काबुल पर भी अपना कब्जा जमा लेता है तो चीन तालिबान को अफगानिस्तान के वैध शासक के रूप में मान्यता देने के लिए तैयार है। चीनी आकलन से परिचित खुफिया सूत्रों के हवाले से यूएस न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के मद्देनजर नए चीनी सैन्य और खुफिया आकलन ने उन्हें आतंकवादी समूह यानी तालिबान के साथ अपने संबंधों को औपचारिक रूप देने के लिए तैयार करने के लिए प्रेरित किया है। बता दें कि अमेरिका तालिबान को मान्यता देने के खिलाफ है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान ने मई में अपना आक्रमण शुरू किया और अब तक कई प्रांतों और प्रमुख जिलों पर कब्जा कर लिया है। लॉन्ग वॉर जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, पहले से तालिबान द्वारा नियंत्रित अनुमानित 73 जिलों के अलावा, आतंकी समूह ने 160 से अधिक जिलों में अपना कब्जा जमा लिया है। अगर लेटेस्ट आंकड़ों की बात करें तो तालिबान ने अब अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से 12 पर अपना कब्जा कर लिया है, जिसमें कंधार, हेरात और लश्कर गाह जैसे अहम शहर शामिल हैं।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की अचानक वापसी को बीजिंग अवसर के साथ एक चुनौती के रूप में भी देख रहा है। चीन को फायदा यह दिख रहा है कि अफगानिस्तान में पश्चिमी देशों द्वारा खाली की गई पावर वैक्यूम को वह भर सकता है और चुनौती यह है कि तालिबान इस्लामिक आतंकवादी समूहों के साथ ऐतिहासिक संबंधों वाला एक संगठन है। इसलिए चीन काफी चतुराई से अफगानिस्तान में अपने कदम रख रहा है। इसके अलावा, चीन की नजर अफगानिस्तान पर इसलिए भी है, क्योंकि वह भारत को उस तरफ से भी घेरना चाहता है।
अफगानिस्तान में 20 साल तक रहने के बाद अमेरिकी सेना की वापसी ने तालिबान के लिए अफगानिस्तान के विशाल क्षेत्रों पर नियंत्रण का मार्ग प्रशस्त किया है और यह अब काबुल सरकार के लिए खतरा है। इधर, ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM), जिसे तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के रूप में भी जाना जाता है, चीन के लिए एक गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा है। इसी खतरे से निपटने के लिए चीन तालिबान से नजदीकी बढ़ा रहा है और उससे संबंध तोड़ने का दबाव भी बना रहा है।